बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

'द्रोह'काल

दिन-ब-दिन होनेवाली घटनाएं कुचलती जा रही है मदमस्त हाथी की तरह आम लोगों की समझ को, उनकी सोच को...। सौ टके का सच इस वक्त अलग-अलग सियासी पार्टियों के शोर....विचारधाराओं के टकराव में बिखर कर रह गया है....देशभक्ति जिनके लिए सम्मान का विषय नहीं, सारा ध्यान उसी पर केंद्रित हो रहा है....कोर्ट से जारी आदेश और उन आदेशों के मतलब से पूरा यथार्थ बदल रहा है  और कन्हैया सबकी सोच का हरण कर रहा है, और देश को गुमराह ।

पटियाला हाउस कोर्ट में पेशी के लिए आए कन्हैया की पहले पिटाई की कोशिश हुई....उसके लिए फांसी की मांग की गई और मीडियाकर्मियों को भी वकीलों ने नहीं छोड़ा......। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट से स्थिति का जायजा लेने गई टीम पर भी पथराव किया गया...जब पटियाला हाउस कोर्ट में स्थिति शांत नहीं हुई...तो सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई और दिल्ली पुलिस से साफ-साफ लफ्जों में पूछा गया कि आदेश के बावजूद पुलिस ने सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं किए इस सवाल के बाद पटियाला हाउस कोर्ट में कन्हैया मामले की सुनवाई हुई और फिर उसे चौदह दिनों के न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया ।

कन्हैया अब तिहाड़ जेल पहुंच गया है....लेकिन जेएनयू में लगी आग देश के अलग-अलग हिस्सों में फैल चुकी है.....दिल्ली, जाधवपुर, नागपुर, हैदराबाद, इंदौर और पटना हर जगह की एक सी तस्वीर.....इन तस्वीरों से देश में इस वक्त क्या माहौल है, अंदाजा लगाया जा सकता है...कैसे चंद नापाक शब्दों ने देश की फिजा में जहर घोल दिया है, वर्तमान वय्वस्था और सियासत पर सवाल उठा दिए हैं ।

अफजल के लिए हमदर्दी भरे शब्दों ने जिस द्रोहकाल को जन्म दिया है...उससे सियासी माहौल बिगड़ गया है...तरक्की और भविष्य पर चर्चा की जगह कन्हैया की पिटाई से लेकर जेएनयू में नारेबाजी को लेकर नेता तू-तू मैं-मैं पर उतर आए हैं ।

कौन सही है, कौन गलत ये समझना मुश्किल है...असंभव नहीं...बस कोशिश कीजिए...उस कन्हैया को समझने की, जिस पर देश द्रोह का आरोप लगा है...उस उमर खालिद को जिसके जुबान से जहर बुझे तीर निकले....जाधवपुर यूनिवर्सिटी में खालिद के साथियों को.......।

साथ ही उन नेताओं को भी समझिए जो वोट बैंक के लिए आपको गुमराह कर रहे हैं....आप पर अपनी विचारधारा लाधने की कोशिश कर रहे हैं....ये वक्त आपको संभलने की है....क्योंकि इस वक्त नहीं संभले तो भविष्य आपको माफ नहीं करेगा....क्योंकि ये द्रोहकाल है ।

'द्रोहकाल' का 'मास्टरमाइंड' 

शब्द-शब्द...खंजर-खंजर बनकर देश की छाती में उतर रहा है....और बहस दर बहस तेज है सियासत के छोटे-बड़े पैमाने में । कोई कहता है ये अभिव्यक्ति की आजादी है...कोई कहता है कौम के जिंदा होने की शक्ति है...देश की सच्ची भक्ति है, जहां प्रश्न उठाए जाते हैं, जहां जवाब पूछे जाते हैं । लेकिन सच तो ये है ये 'द्रोहकाल' है, जहां सच पर मुकम्मल झूठ हावी है.....जहां एक आतंकी दस-दस जवानों की शहादत पर भारी है...और झूठे नारों के शोर में चुपचाप जल रही है देश की लहूलुहान आत्मा । 
इस द्रोहकाल को वर्तमान में जिसने हवा दी...जिसने आनेवाले भविष्य के लिए वर्तमान का चेहरा बिगाड़ने की कोशिश की है...उसका नाम है उमर खालिद ।  डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन का नेता उमर खालिद..जिसने नौ फरवरी को अफजल गुरु की बरसी पर जेएनयू में कार्यक्रम का आय़ोजन करवाया...खालिद ने कार्यक्रम में बड़ी तादाद में जेएनयू कैंपस के और बाहर के कश्मीरी छात्रों को बुलाया था और इस दौरान देश विरोधी नारे लगाए...कार्यक्रम की इजाजत रद्द होने के बाद जब डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन और वामपंथी संगठनों के लोग जेएनयू कैंपस में मार्च कर रहे थे तब उमर खालिद उनकी अगुवाई कर रहा था... जिस वक्त नारे लग रहे थे उमर खालिद ना केवल वहां मौजूद था बल्कि जेएनयू प्रशासन और ABVP के खिलाफ उसने ही नारेबाजी शुरू की थी...बाद में वहां देश विरोधी नारे भी लगे । ये पहला मौका नहीं है जब उमर खालिद ने इस तरह की हरकत की हो...दूसरे छात्रों को उकसाया हो...इससे पहले वो जेएनयू कैंपस में देवी देवताओं की नंगी तस्वीरें लगाकर नफरत पैदा करने, आतंकी अफजल गुरु की फांसी पर जेएनयू कैंपस में मातम मनाने, 2010 में  दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ जवानों की शहादत पर जश्न का आयोजन कर चुका है।
उमर खालिद को भारत के खिलाफ आग उगलने की ताकत कहां से मिलती है....ये भी जान लीजिए IB की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि उमर खालिद का संपर्क घाटी में अलगाववादी ताकतों और आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से हैं और वो कई बार पाकिस्तान भी जा चुका है । उमर खालिद के बारे में जो जानकारी सामने आ रही है...उसके मुताबिक देश के 18 अलग-अलग विश्वविद्यालयों के लिए जेएनयू जैसी साजिश रची गई थी..जिसकी एक झलक पश्चिम बंगाल के जाधवपुर यूनिवर्सिटी में देखने को मिल चुकी है ।

जो लोग या स्टूडेंट उमर खालिद के सुर में सुर मिला रहे हैं...जो उमर के शब्द दोहरा रहे हैं....उन्हें याद रखना चाहिए...भविष्य इस द्रोहकाल के लिए उन्हें कभी माफ नहीं करेगा....सियाचिन में शहीद हुए जवानों का परिवार उनके बच्चे कभी इस वक्त को माफ नहीं करेंगे...जब उनके गम में शरीक होने की जगह देश में अफजल जैसे आतंकी पर चर्चा हो रही थी ।

शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

 ग्रैविटेशनल तरंग मतलब ब्रह्मांड की आवाज़


मैं ब्रह्मांड हूं.....अनगिनत...ग्रहों, नक्षत्रों, सौरमंडल और आकाशगंगाओं का समूह हूं मैं....मैं अनंत हूं........इंसान की सोच से परे....अनगिनत अबूझ पहेलियों का संगम हूं...मैं ब्रह्मांड हूं...मैं दृश्यमान भी हूं....और आवाज़ से भरपूर भी....अमेरिका के लिगो लैब में वैज्ञानिकों जो आवाज रिकॉर्ड की है । वो आवाज़ है  करोड़ तीस लाख साल पहले की है वो भी दो ब्लैक होल्स के टक्कर की.....। 

14 सितंबर 2015 को एस्ट्रो फिजिक्स के वैज्ञानिकों ने जो आवाज रिकॉर्ड की है...वो 1 करोड़ 30 लाख साल पहले दो ब्लैक होल्स के टकराने की आवाज है। इस आवाज़ को रिकॉर्ड करने के लिए अमेरिका में दो भूमिगत डिटेक्टर बनाए गए हैं....लिगो को कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है... जो गुरुत्व तरंगों से गुजरने वाली  छोटी से छोटी कंपन का भी पता लगा सकते हैं ।
लिगो एल आकार की मशीन है...जो लेजर लाइट और अंतरिक्ष भौतिकी का इस्तेमाल कर गुरुत्व तरंगों का पता लगाती है....लिगो का निर्माण 1999 में शुरू हुआ था और  2001 से इसमें शोध शुरु हुए...लिगो के वैज्ञानिकों को पिछले साल 14 सितंबर को उस वक्त सबसे बडी़ सफलता मिली जब इसने गुरुत्व तरंगों के पहले संकेत पकड़े....यहां वैज्ञानिकों ने गुरुत्व तरंगों को 7.1 मिलीसेकंड बाद नोट किया । इस आवाज की रिकॉर्डिंग के बाद वैज्ञानिकों को अपनी खोज के हकीकत होने का भरोसा हुआ और मेरी आवाज सुनने की उनकी तमन्ना पूरी हुई....
इन तरंगों की खोज से खगोलविद काफी खुश हैं...क्योंकि इससे मुझे देखने का उनको एक नया नजरिया मिला...उनके लिए यह एक बेआवाज  फिल्म से आवाज आने जैसा है...क्योंकि ये तरंगे ब्रह्मांड यानि मेरी आवाज हैं....खोज टीम में शामिल कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोफिजिसिस्ट स्जाबोल्क्स मार्का ने कहा कि अभी तक हमारी नजरें सिर्फ आसमान पर थीं और हम उसका संगीत नहीं सुन सकते थे...अब आकाश पहले जैसा नहीं होगा। जिस ग्रैविटेशनल तरंगों से इंसानों की सोच बदली है...वो ग्रैविटेशनल तरंग अंतरिक्ष में होने वाले खिंचाव के माप हैं, ये बड़े द्रव्यमानों की गति के ऐसे प्रभाव हैं जो अंतरिक्ष समय की संरचना को स्पष्ट करते हैं....जो अंतरिक्ष और समय को एक रूप में देखने का तरीका है । ये प्रकाश की गति से चलती हैं और इन्हें रोकना या बाधित करना संभव नहीं है ।
अंतरिक्ष और समय को देखने का नजरिया बदलने वाला है...लेकिन ये इंसानी विकास की अगली सीढ़ी भर है...जिसके पहले पायदान पर अलबर्ट आइन्सटीन और गैलेलियों ने कदम रखा था ।
लिगो लैब में जिन ग्रैविटेशनल तरंगों की आवाज़ रिकॉर्ड हुई है...उसकी चर्चा आज से सौ साल पहले दुनिया के सबसे महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने की थी...लिगो और लिगो के लिए काम करनेवाले सैकड़ों वैज्ञानिक जिस खोज पर इतरा रहे हैं.........उसकी नींव सौ साल पहले 1916 में ही पड़ गई थी जब दुनिया के सबसे महान और सबसे तेज आईक्यू वाले वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने थिअरी ऑफ रिलेटिविटी यानि सापेक्षता के सिद्धांत के साथ  ग्रैविटेशनल वेव्ज का भी सिद्धांत दिया था ।
ग्रैविटेशनल वेव्ज को समझने, जानने और पकड़ने में सौ साल का वक्त क्यों लग गया...और क्यों वैज्ञानिक इस खोज पर इतने खुश हैं...इसका अंदाजा आइंस्टीन की बातों से हो जाता है.......आइंस्टीन ने कहा था ये वेव्ज इतनी हल्की हैं कि इन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल है और साइंटिस्ट इसे पकड़ नहीं पाएंगे ।
ग्रैविटेशनल वेव्ज की थिअरी पर काम असंभव सा था...शायद इसी वजह से दुनिया के सबसे तेज आईक्यू वाले अलबर्ट आइंस्टीन का भरोसा भी 1930 के दशक में  इस थिअरी पर उठने लगा था.....लेकिन 1970 के दशक में साइंटिस्ट ने पहली बार अप्रत्यक्ष सबूत हासिल किए और अब सीधे-सीधे ग्रैविटेशनल वेव्ज को प्रत्यक्ष रूप में रिकॉर्ड किया गया है ।
इस रिकॉर्डिंग पर लिगो टीम के लीडर और मैसाचुएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एमआईटी के डेविड शूमाकर ने कहा कि ये वेव्ज वैसी ही हैं, जैसी आइन्स्टीन ने कल्पना की थी.....इसकी तीव्रता 20-30 हर्ट्ज की है...गिटार के सबसे कमजोर नोट की तरह....एक सेकंड के छोटे-से हिस्से में 150 हर्ट्ज या उससे भी ज्यादा तीव्रता पर जाने वाली आवाज। पियानो के मिडल सी के बराबर
ये आवाज़ कमजोर भले ही है.... लेकिन इसकी धमक से इंसानों की सोच, ब्रह्मांड को समझने उनकी दिमागी ताकत को असीम शक्ति मिलेगी...ब्रह्मांड की उत्पत्ति की नई थिअरी पर काम शुरु होगा....पुरानी थिअरियों का और व्यापक पैमाने पर परीक्षण होगा ।
ग्रैविटेशनल वेव्ज की खोज में लिगो के साथ कई देशों के वैज्ञानिक मिलकर काम कर रहे थे....जिसमें भारत के इंस्टिट्यूट ऑफ प्लाज्मा रिसर्च गांधीनगर, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनामी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे और राजारमण सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलाजी इंदौर के वैज्ञानिक भी अहम भूमिका में थे। 
तभी तो इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बधाई देने में देर नहीं की और ट्विट किया हमें बहुत गर्व है कि भारतीय वैज्ञानिकों ने इस चुनौतीपूर्ण खोज में अहम भूमिका निभाई है, एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा कि गुरुत्वीय तरंगों की ऐतिहासिक खोज ने ब्रह्मांड को समझने के लिए एक नया मोर्चा खोल दिया है.. मैं देश के एक विकसित गुरुत्वीय तरंग अन्वेषक के साथ और अधिक योगदान के लिए आगे बढ़ने की उम्मीद करता हूं... ।
ग्रैविटेशनल वेव्ज कितनी अहम है...इसका अंदाजा आप आसान शब्दों में इस बात से लगा सकते है...कि यही वो थिअरी है...जिससे वक्त से लड़ने की ताकत इंसान हासिल कर सकता है...टाइम मशीन यानि वक्त में आगे-पीछे जाने का जुगाड़ कर सकता है ।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

आंसू...जब 'शब्द' बन गए



दिव्यांश का जाना लाख-लाख सपनों का जाना है......मां के अरमानों का जाना है, पिता की उम्मीदों का जाना है.......। उस उम्मीद की भारपाई अब कभी नहीं होगी....वो सपने, अब कभी पूरे नहीं होंगे......इस आंगन में अब मां की वो दिव्य आवाज कभी सुनाई नहीं देगी...जो दिव्यांश से थी, उसकी मस्ती से थी, उसकी शरारत से थी । दिव्यांश के लिए उसकी मां की ममता अब कागज पर कोरे शब्द हैं...हजार-हजार सवाल हैं...जरा पढ़िए उन सवालों को 
चांद वही है..तारे वही है
तेरे बिस्तर पर तेरी मां वही है
पापा वही है, तकिया वही है, चादर वही है
पर मेरे साथ, मेरे लाल, आज तू नहीं है
तेरे खिलौने देखूं
तेरी कार देखूं
पर मेरे चांद तेरा चेहरा
मैं आज कैसे देखूं ?
छुता था कल तक इन सबको अपने हांथों से
यही सोच आज इन्हें गले से लगा रही हूं...
आंखें बंद करूं, तो तू दिखे
आंखें खोलूं , तो तू ओझल हो जाए
एक बार तूने जाते वक्त 'मां'
पुकारा तो होता !
काश ! मैं तेरे साथ होती
काश ! आज तू मेरे पास होता
काश ! काश ! काश !
       इस काश का जवाब ना तो रेयान इंटरनेश्नल की लाखों दलीलों में है और ना सरकार के हजारों भरोसे में....बस शब्द हैं...सवाल हैं और सवालों पर सवाल है । 

सोमवार, 25 जनवरी 2016

"नए मिशन पर अमित शाह"

सियासत में हर्फ़-हर्फ़ को शब्द और शब्द-शब्द से जीत की गाथा लिखना जिनकी शख्सियत है.......दुनिया जिन्हें आज के चाणक्य के तौर जानती है और जिन्हें अमित शाह के नाम से पहचानती है ।


वो लाखों-लाख बीजेपी कार्यकर्ताओं की आवाज़ हैं।
अपराजेय और सियासी जीत के सूत्रधार हैं ।
सियासी मैनेजमेंट में चौंकाने तक माहिर हैं।
वो अच्छे दिनों की गारंटी हैं ।
मोदी को प्रधानमंत्री बनाने वाले हैं ।
बीजेपी के सबसे बड़े नायक हैं।
और, वर्तमान के चाणक्य हैं।
 
सियासत से दूर व्यापारिक घराने में पले-बढ़े अमित 'अनिलचंद्र' शाह कैसे चाणक्य बने......कैसे वो बीजेपी के लिए अच्छे दिनों की गारंटी बनकर उभरे......कैसे उन्होंने नरेंद्र मोदी को पहले गुजरात के मुख्य्मंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया और कैसे उनके लिए दिल्ली में तख्त-ओ-ताज सजाया...इसे जानना समझना है... तो 34 साल पहले 1982 के दौर में लौटना होगा, उस दौर को समझना होगा...जब आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मुलाकात हुई थी...।
34 साल पहले 
अहमदाबाद, गुजरात  
बात 1982 की है कई साल बाद अमित शाह की मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई थी...उन दिनों अमित शाह प्लास्टिक पाइप का अपना पारिवारिक व्यापार संभाल रहे थे और नरेंद्र मोदी हिमालय से लौटकर अहमदाबाद में पार्टी का काम-काज देख रहे थे....मोदी से मिलने के बाद अमित शाह ने उनके सामने पार्टी से जुड़ने की बात कही और मोदी उन्हें लेकर बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला के पास पहुंचे...वाघेला उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं मैं पार्टी ऑफिस में ही बैठा था, मोदी अपने साथ एक लड़के को लेकर मेरे पास आए और कहा कि ये अमित शाह हैं,  प्लास्टिक के पाइप बनाने का व्यापार करते हैं, आप इन्हें पार्टी का कुछ काम दे दीजिए ।
शंकर सिंह वाघेला ने अमित शाह को अपने पास रख लिया और यहीं से शुरु हुई अमित शाह के चाणक्य बनने की कहानी ।
साल 1991
गांधीनगर, गुजरात

1991 में लालकृष्ण आडवाणी की गांधीनगर से जीत अमित शाह के शानदार चुनावी प्रबंधन का नतीजा था...
साल 1996
गांधीनगर, गुजरात
इसी तरह का प्रबंधन अमित शाह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए भी दिखाया...जब 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने गांधीनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा ।
इन दोनों चुनावों के बाद अमित शाह गुजरात में बीजेपी के सबसे बड़े रणनीतिकार बनकर उभरे...और इस दौरान उनकी नरेंद्र मोदी से करीबी भी बढ़ती गई और दोनों के रिश्ते मजबूत होते गए..।
गुजरात में सहकारी संस्थाओं और गुजरात क्रिकेट संघ को कांग्रेस के मजबूत हाथों से निकालने के साथ-साथ छोटे-बड़े 42 चुनावों में लगातार जीत हासिल कर अमित शाह सफलता के उच्चतम शिखर की ओर कदम बढ़ाते रहे....नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात की जमीन तैयार करते रहे
अक्टूबर 2001
गांधीनगर, गुजरात
केशूभाई पटेल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का दबाव और उनकी जगह नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे अमित शाह की ही रणनीति थी...क्योंकि अमित शाह जानते थे कि नरेंद्र मोदी ही वो शख्स हैं...जो  भूकंप पीड़ित गुजरात को डेवलपमेंट का रोल मॉडल बना सकते हैं...नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री बनते ही आपणुं गुजरात-आगवुं गुजरात यानि (हमारा गुजरात-विशिष्ट गुजरात) का जो नारा दिया...उसमें अमित शाह की छाप नजर आती है...जो खुद विशिष्ट से अति विशिष्ट होते जा रहे थे....।
मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी गुजरात का विकास करते रहे और इधर अमित शाह उनके लिए दिल्ली का रास्ता बनाते रहे....इस दौरान उनपर फर्जी एनकाउंटर जैसे दाग भी लगे, तड़ीपार भी होना पड़ा लेकिन वो अपने मकसद से डिगे नहीं....।
अमित शाह जानते थे गुजरात से दिल्ली का सफर बिना उत्तरप्रदेश गए असंभव है......लिहाजा उन्होंने 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तरप्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष पद की चुनौती स्वीकार कर ली......और 2014 के महायज्ञ की महातैयारी शुरु कर दी ।
19 मई 2013
लखनऊ, उत्तरप्रदेश
उत्तरप्रदेश बीजेपी के प्रभारी बनने की खबर ने यूपी के पार्टी कार्यकर्ताओं को जोश से भर दिया....बीजेपी कार्यकर्ता कुछ कर गुजरने की चाहत लिए 2014 के महायज्ञ लिए तैयार होने लगे... और उधर अमित शाह 2014 के लिए प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करने की तैयारी में लगे रहे ।   
यूपी में सगंठन मजबूत बनाने के साथ-साथ अमित शाह दिल्ली के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी को पुख्ता बनाने में लगे हुए थे....ये रणनीति सफल हुई गोवा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ।
9 जून 2013, गोवा पिछले 6 महीने से जो कयास लगाए जा रहे थे वही हुआ बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में...जहां नरेंद्र मोदी को बीजेपी प्रचार अभियान की कमान सौंप दी गई....पार्टी के इस फैसले से पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को झटका लगा....इस फैसले के बाद सबसे मजबूत साथी नीतीश कुमार ने अपना रास्ता अलग कर लिया......लेकिन अमित शाह को यकीन था...कि उनकी ये सियासी चाल कभी नाकामयाब नहीं हो सकती....।
12 जून 2013
लखनऊ, उत्तरप्रदेश
यूपी प्रभारी के तौर पर पहली बार अमित शाह लखनऊ पहुंचे और यहां नेता-कार्यकर्ताओं की मीटिंग में मिशन 273 प्लस का ऐलान कर दिया...इस ऐलान के साथ ही साफ हो गया कि बीजेपी के अच्छे दिन आनेवाले हैं, मोदी आनेवाले हैं।
प्रदेश स्तर से पोलिंग बूथ तक संगठन का अमित शाह ने काया कल्प कर दिया....और एक ऐसी चाल चली जिससे आने वाले दिनों में पूरे उत्तरप्रदेश में भगवा ही भगवा नजर आनेवाला था....
13 मार्च, 2014 नरेंद्र मोदी ने बडोदरा के साथ-साथ वाराणसी से भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया
मोदी को अमित शाह की रणनीति पर पूरा भरोसा था और वो जानते थे इस फैसले का असर उत्तरप्रदेश के साथ-साथ बिहार पर भी पड़नेवाला है..।
ये अमित शाह का मास्टर स्ट्रोक था....ऐसा मास्टर स्ट्रोक जिसने उन्हें सियासत का सिंघम बना दिया ।
सियासत के इस सिंघम ने कमाल कर दिया....सारे सियासी फॉर्मूले धरे के धरे रह गए...अमित शाह के एक ही मास्टर स्ट्रोक ने बीजेपी को सत्ता में और नरेंद्र मोदी को सत्ता के शिखर तक पहुंचा दिया।
बीजेपी को इस चुनाव में अकेले 282 सीटें मिली जिसमें उत्तरप्रदेश में 80 में से 71, बिहार में 40 में से 22, उत्तराखंड में 5 से 5, हरियाणा में 10 में से 7, झारखंड में 14 में से 12, मध्यप्रदेश में 29 में से 27, महाराष्ट्र में 48 में से 23, राजस्थान में 25 में से 25, दिल्ली में 7 में से 7, छत्तीसगढ़ में 11 में से 10 और गुजरात में 26 में से 26 सीटों के साथ-साथ छोटे-छोटे प्रदेशों में भी भारी सफलता मिली
9 जुलाई 2014
लोकसभा चुनाव में इस सफलता ने निर्विवाद रूप से अमित शाह को बीजेपी के चाणक्य के तौर पर स्थापित कर दिया और 9 जुलाई 2014 को अमित शाह को बीजेपी का सर्वेसर्वा बना दिया ।
पार्टी ने अमित शाह पर भरोसा दिखाया और अमित शाह भी उस भरोसे पर खरे उतरे....अमित शाह के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनावों में झारखंड में 37, जम्मू एंड कश्मीर में 25, हरियाणा में 47, महाराष्ट्र में 122 सीटें जीतकर इन प्रदेशों में पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया.......हालांकि दिल्ली और बिहार में मिली हार की वजह से अमित शाह के चुनावी प्रबंधन पर सवाल जरुर खड़े हुए लेकिन हर कोई जानता है बिहार में वोट जाति के नाम पर पड़ते हैं और लालू के साथ आकर नीतीश ने जातिगत समीकरण का जो मजबूत खाका तैयार किया, उससे पार पाना आसान नहीं था बिहार चुनाव में हार के लिए स्थानीय नेता भी जिम्मेदार थे जिन्होंने पार्टी के लिए उतनी मेहनत नहीं की जितनी जरुरत थी....।
दिल्ली और बिहार में लगे दाग के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और संघ का भरोसा अमित शाह पर उसी तरह कायम है...जैसे 2013 और 2014 में कायम था । 
नरेंद्र मोदी को यूपी के रास्ते देश भर में परचम फहराने के लिए एक सेनापति की जरूरत थी...और उनके लिए ये चुनाव मुश्किल नहीं था ..क्योंकि उनके पास मौजूद थे उनके खास शाह  ...
मोदी के शाह ने लोकसभा चुनाव में यूपी की चुनावी कमान तो संभाल ली थी  ... लेकिन शाह के सामने थी अबतक की सबसे बड़ी  चुनौती.. और वो चुनौती थी  यूपी फतह की ...80 लोकसभा सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में तब बीजेपी के महज 10 सांसद थे....
कागज पर तो संगठन मजबूत था लेकिन जमीन पर कार्यकर्ता नदारद थे ...और तो और नेता भी पार्टी का झंडा बुलंद करने की जगह अपनी जमीन पक्की करने के लिए गुटबंदी में व्यस्त थे ।
लेकिन एक दशक से गुजरात में मोदी की विजय पताका फहराने वाले सेनापति अमित शाह भला हार कहां मानने वाले थे ....
चुनौती कठिन थी लेकिन साबरमती की भूमि पर कमाल दिखाने वाले शाह ने मां गंगा से आशीर्वाद लेने की ठान ली थी ...
शाह के लिए यूपी की जमीन भले ही नई हो लेकिन उनके पास था करीब 3 दशक का रणनीतिक अनुभव और इन सबसे आगे जा कर कार्यकर्ताओं से उनके सीधे संवाद की कला...
16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ ही यूपी पर केसरिया पताका फहरा रहा था ...बीजेपी ने शाह की अगुवाई में 71 सीटें जीत कर नरेंद्र मोदी के दिल्ली कूच का रास्ता साफ कर दिया था ..अभिभूत से नरेंद्र मोदी ने भी तब माना था कि ये कमाल सिर्फ अमित शाह ही कर सकते हैं...।
अमित शाह पर नरेंद्र मोदी का भरोसा कोई नया नहीं है ... ये बात साल 1982 की है जब नरेंद्र मोदी से उनकी पहली मुलाकात हुई थी...
1995 में केशुभाई के मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी-शाह की जोड़ी ने गुजरात से कांग्रेस के सफाए के लिए एकजुट कोशिश शुरू की थी...नरेंद्र मोदी अमित शाह की संगठन की क्षमता से बखूबी परिचित हो चुके थे ...तभी तो 2002 में गुजरात की सत्ता संभालने के बाद अमित शाह को उन्होंने गृहमंत्री बनाया ...
लगभग दो दशक तक शाह ने गुजरात में बीजेपी के मुख्य रणनीतिकार की भूमिका निभाई ..अब मौका था पूरे देश में शाह की संगठन क्षमता के इस्तेमाल की ...और लोकसभा जीतने के बाद नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी बीजेपी की कमान सौंपी ....
कार्यकर्ताओं से नजदीकी अमित शाह का ब्रम्हास्त्र है ...आरएसएस के झंडाबरदार अमित शाह ने वार्ड सचिव से संगठन में शुरुआत की थी... और वे कार्यकर्ताओं की समस्या से लेकर उनके बेहतर इस्तेमाल को बखूबी जानते हैं ... कार्यकर्ताओं से जुड़ाव का ही करिश्मा है कि जिसने बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा दिलवाया है।
चुनाव प्रबंधन में अमित शाह को प्रमोद महाजन की तरह की महारत हासिल है ... माना जाता है कि अटल-आडवाणी युग में पार्टी जिस तरह से महाजन पर निर्भर थी शायद उससे भी ज्यादा आज शाह के प्रबंधन पर निर्भर है ...चुनावी प्रबंधन में बूथ कमेटी पर शाह का सबसे ज्यादा जोर रहता है ...जो आरएसएस की शाखा परंपरा से लिया गया है ...
करीब एक दशक तक गुजरात में मोदी मंत्रिमंडल का अहम हिस्सा होने के बावजूद उन्होंने हमेशा खुद को लो प्रोफाइल ही रखा ... चुनाव की गहमा गहमी के बीच भी वे बिल्कुल सादगी से अपना काम करते रहे ...
अमित शाह के बारे में मशहूर है कि वे कार्यकर्ताओं का एक भी फोन मिस नहीं करते... कार्यकर्ताओं के साथ हर मुद्दे पर लंबी बात करना उनकी पुरानी आदत है... बीजेपी के कई बड़े नेता उनकी इस क्षमता को आज भी सलाम करते हैं...
अमित शाह की एक और खासियत काम को लेकर उनका प्रैक्टिकल एप्रोच है ..तभी तो अपनी सादगी और काम के लिए मशहूर हस्तियां भी उनकी नेतृत्व क्षमता को सलाम करती हैं ।
अमित शाह ने आरएसएस की विचारधारा को जितना आत्मसात किया...वक्त की नजाकत को भी उन्होंने उतनी ही शिद्दत से समझा.. ...और इसी का नतीजा है चुनाव के दौरान उनका वॉर रूम कॉन्सेप्ट ...अमित शाह की इस रणनीति ने हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में कमल खिलाया तो जम्मू कश्मीर में भी पहली बार बीजेपी की सरकार बनाई... लेकिन शाह के सामने अभी भी कई बड़ी चुनौतियां हैं तो बीजेपी की उम्मीद अभी भी शाह पर टिकी है ।।।।
एक के बाद एक लगातार जीत ... 2014 अमित शाह के लिए बेहद खास रहा ...जब उनकी अगुआई में बीजेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में विजय पताका फहराई... झारखंड को भी लगभग एक दशक बाद स्थिर सरकार का तोहफा दिया ... तो उनकी अगुआई में जम्मू कश्मीर में पहली बार पीडीपी के साथ मिलकर बीजेपी की सरकार बनी......
लेकिन 2015 की लौटती  सर्दी अमित शाह के लिए मुश्किल पैदा करने वाली साबित हुई ...जिस दिल्ली से पूरे देश में बीजेपी की सरकार चलती है ... वहीं की विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एक नई सियासी पार्टी आम आदमी पार्टी के हाथों मात मिली...तो लगभग 8 महीने बाद देश के एक दूसरे महत्वपूर्ण प्रदेश बिहार में... विधानसभा चुनाव में भी शाह के नेतृत्व में बीजेपी जीत से दूर रह गई ...
बिहार चनाव की हार पार्टी के लिए बड़ा झटका था लेकिन इस मुद्दे पर पार्टी एक जुट है...इसे बीजेपी के दिग्गज भी मानते हैं और ये भी स्वीकार करते हैं कि हार सामूहिक नेतृत्व की विफलता थी.
बिहार की हार के लिए पार्टी उन वजहों को भी जिम्मेदार मानती है . जिसने बिहार की जनता को गुमराह किया ... संगठन में काफी सालों तक काम करने वाले कई नेता मानते हैं कि विकास की राजनीति पर बिहार की जातीय राजनीति हावी हो गई ...और पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा.... 
नरेंद्र मोदी की अगुआई में मोदी सरकार  करीब एक तिहाई कार्यकाल पूरा कर चुकी है ...तो इस साल देश में कई महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव हैं...और बीजेपी की नजर उन राज्यों पर है जहां अब तक उनकी उपस्थिति ना के बराबर रही है ... पार्टी की नजर पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तर पूर्व तक पर है ।
पार्टी को पिछले साल दो बड़ी हार भले ही झेलनी पड़ी हो लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छूटा है ... पार्टी असम में अच्छी हालत में है ..और शायद पहली बार राज्य में सरकार बनाने के बेहद करीब भी ।
एक के बाद एक 4 प्रदेशों में विजय पताका लहरानेवाले अमित 'अनिलचंद्र' शाह अब नए मिशन पर हैं......इस नए मिशन पर इसबार उनका सामना पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी में मुलायम सिंह यादव से होना है........तो असम, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी, के साथ-साथ पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी उन्हें अपनी रणनीति का कौशल दिखाना है....।
'मिशन 2016'
असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पुडुचेरी
इस साल अमित शाह के सामने सबसे पहली और बड़ी चुनौती असम विधानसभा चुनाव है...जिसके लिए प्रचार अभियान का काम शुरु भी हो चुका है...और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां का चुनावी दौरा भी कर चुके हैं..।
126 सीटों वाले असम विधानसभा के लिए अमित शाह ने  84 प्लस का लक्ष्य रखा है...और इसके लिए असम गण परिषद समेत कई दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पर बात चल रही है ।
'मिशन बंगाल'
इसी साल पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं....और ममता बनर्जी से सियासी जंग के लिए अमित शाह पिछले डेढ़ साल से तैयारी में लगे हैं....बीजेपी को दिल्ली में हरा चुके केजरीवाल और बिहार में हरा चुके लालू-नीतीश दोनों ममता बनर्जी को चुनावी टिप्स देने में लगे हैं...ऐसे में अमित शाह को सतर्क रहना होगा.....और किसी भी कीमत पर उन्हें पश्चिम बंगाल के लोगों का दिल जीतना होगा।
मिशन 2017
उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर
2016 में अमित शाह जो रणनीति बनाएंगे और जितना सफल होंगे उसी आधार पर 2017 की तैयारी मुकम्मल होगी...ममता बनर्जी को अगर अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में घेर लिया तो फिर यूपी की राह आसान हो जाएगी....हालांकि उत्तरप्रदेश में अखिलेश-मुलायम के साथ-साथ मायावती भी उनके लिए बड़ी चुनौती हैं । 
उत्तरप्रदेश के बाद पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में भी विधानसभा चुनाव 2017 में ही होनेवाले हैं...और यूपी की हार-जीत का असर वहां भी देखने को जरूर मिलेगा....वैसे उत्तराखंड और गोवा में बीजेपी मजबूत स्थिति में है और वहां चुनाव जीतना बीजेपी के लिए कोई मुश्किल नहीं....मुश्किल है तो पंजाब..।
वैसे, मुश्किलों को आसान और परिस्थितियों को अपने माकूल बनाना अमित शाह की फितरत रही है...और इसी पर भरोसा कर उन्हें फिर से भारतीय जनता पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है....देखना है इस बार अमित शाह क्या गुल खिलाते हैं और ममता-मुलायम से कैसे पार पाते हैं ।

मंगलवार, 24 नवंबर 2015

 आखिर किस बात का 'लगान' चाहते हैं आमिर ?  

सवाल के लिए उठी ऊंगली पर जवाब की जिस मुट्ठी का प्रहार आमिर ख़ान ने किया है उसके लिए अतुल्य भारत उन्हें कभी माफ नहीं करेगा....। आमिर जिस अतुल्य भारत का दम भरते थे माफ कीजिएगा स्वांग रचते थे....वो अब उनके लिए असहिष्णु हो चुका है...और अब वो अपनी पत्नी के साथ हिन्दुस्तान छोड़कर जाने की चर्चा करते हैं।

ना जाने कौन सा देश है...जो आमिर को हिन्दुस्तान से ज्यादा सहिष्णु लगता है...पाकिस्तान, ईरान, इराक, अमेरिका या फिर ब्रिटेन जहां ताजा सर्वे में मुस्लिमों के प्रति लोगों में तीन सौ फीसदी तक नफरत बढ़ी है....सवाल तो कई उठते हैं जनाब की नीयत पर....जो उनके असहिष्णु होने की गवाही देते हैं...मसलन

आतंकवादी की मौत पर भी लोग श्रीनगर में विरोध पर उतर आते हैं,.....हंगामा, पत्थरबाजी और आगजनी करते हैं, आमिर फिर भी खामोश रहता हैं ।
कुछ उपद्रवियों ने जम्मू-कश्मीर के सीएम मुफ्ती मोहम्मद सईद के घर पाकिस्तान का झंडा लगा दिया...इस बात पर आमिर खामोश रहते हैं...।
शहीद की आखिरी संस्कार की रुह कंपा देनेवाली आवाज़ हर दिन कहीं ना कहीं से आती है... फिर भी आमिर खामोश रहते हैं


इस बात पर भी जरा गौर कीजिए...आमिर की पत्नी और शहीद हुए कर्नल संतोष महादीक की पत्नी कि तुलना पर...जहां अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए आमिर की पत्नी देश छोड़ना चाहती है...वहीं संतोष महादिक की पत्नी देश की सुरक्षा के लिए अपने बच्चों से आर्मी ज्वाइन करने को कहती हैं।

ये फेहरिस्त इतनी लंबी है...जितनी आमिर खान की जिंदगी के घंटे हुए होंगे....सवा सौ करोड़ जीवित लोगों का देश है ये...असहिष्णुता की बात करनेवाले आमिर और उनके जैसे लोगों से बस एक सवाल है....अगर देश असहिष्णु होता तो क्या इतना बोलने के बाद भी उनकी जुबान सलामत रहती....।

धिक्कार है....धिक्कार है....बंद कीजिए आमिर खान साहब देश की अस्मिता से 'दंगल' और बंद कीजिए अपने अल्पसंख्यक होने का लगान वसूलना...क्योंकि कयामत से कयामत तक कुछ हो ना हो इस देश की मिट्टी सहिष्णु थी.. सहिष्णु है और सहिष्णु ही रहेगी...ये आप जैसे स्वांग रचनेवाले ना कभी समझे हैं और ना समझ पाएंगे।
  
आमिर साहब जरा इन सवालों का जवाब भी दीजिए जिसके बगैर ये मामला अधूरा है...मसलन
क्या आमिर खान का ये पब्लिसिटी स्टंट है ? 
क्या ये आनेवाली फिल्म 'दंगल' का प्रमोशन है ?
क्या आमिर खान राजनीति में आना चाहते हैं ?
आमिर के पास सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम है, फिर डर कैसा ?
आमिर से हर कोई प्यार करता है, ऐसे में उन्हें किससे डर लगता है ?

इन सवालों के जवाब में सवाल ही उठे....मसलन अभिनेता अनुपम खेर ने ट्वीट किया '' प्रिय आमिर खान, क्या आपने किरण से पूछा था कि वो कौन से देश जाना चाहेंगी?.. क्या आपने उन्हें ये बताया कि इसी देश ने आपको आमिर खान बनाया है'' बात बॉलीवुड सितारे की थी...लेकिन आग सियासी जगत में लग गई...सड़क पर प्रदर्शन शुरु हो गए तो नेताओं ने जमकर तीर चलाए। बीजेपी वालों ने आमिर को सलाह दी लोगों को जोड़ने की तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आग में घी डालने का काम कर दिया, उन्होंने ट्वीट किया ''सरकार और मोदी जी पर सवाल उठाने वाले सभी लोगों को देश विरोधी, पूर्वाग्रही ठहराने की जगह सरकार को पता लगाना चाहिए कि उनकी परेशानी क्या है ? दादागीरी करने, अपशब्द कहने और धमकी देने से भारत में समस्याएं हल नहीं हो सकतीं "
ठीक कहते हैं राहुल गांधी....धमकी देने से समस्या का समाधान नहीं होता....तो फिर देश छोड़ने की बात करना क्या किसी धमकी से कम है ? असहिष्णुता के नाम पर लोगों को डराना क्या किसी धमकी से कम है ? अगर कम है तो फिर कोई बात नहीं....होने दीजिए हंगामा...इस देश ने हमेशा सहन किया है...और इस आग से भी नहीं जलेगी हिन्दुस्तान की सहिष्णु आत्मा।

शनिवार, 21 नवंबर 2015

 जन्मदिन का 'समाजशास्त्र'

 

पिछले कुछ सालों से जब भी मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन आता है...समाजवाद सुरीला हो उठता है। कभी रामपुर तो कभी सैफई की फिज़ा में धूल-मिट्टी और मेहनत की महक की जगह कृत्रिम इत्र और नेताजी के स्वागत में आए फूलों की महक घुल जाती है....तो कभी माधुरी की थिरकन और सलमान के अंदाज-ए-बयां से उत्तरप्रदेश के लोगों का दिल गार्डन-गार्डन हो उठता है।

उत्तरप्रदेश के मुखिया के पिता हैं वो, जन्मदिन का जश्न शाही तो होना ही चाहिए........धूप में फूलों की थाल लिए महिलाओं और बच्चों की इन तस्वीरों के अलावे स्कूल छोड़कर आए सैकड़ों छात्रों की भी तस्वीर है...जो नेताजी की अगुवानी करने आते हैं...उन्हें जन्मदिन की बधाई देने आते हैं।

ये समाजवाद का काफिला है...जहां हवा से फूल बरसते हैं....ढाई करोड़ का मंच सजता है...और तो और नेताजी के लिए 77 किलो का केक मंगाया जाता है....जश्न समाजवाद का है, उसके समाजशास्त्र पर भी जरा ध्यान दीजिए ।
एक लाख देशी-विदेशी मेहमानों की मेजबानी
एथलेटिक्स स्टेडियम में 2.5 करोड़ की लागत से मंच
नेताजी के 77वें जन्मदिन के लिए 77 किलो का केक
आगरा के होटल आईटीसी मुगल की कैटरिंग
मनोरंजन के लिए 200 कलाकारों की टीम
ए.आर. रहमान, जावेद अली और हरिहरन का परफॉर्मेंस 
कानपुर से मंगाए गए 15 क्विंटल बनारसी लड्डू का भोज
नेताजी के स्टेडियम पहुंचने के लिए लंदन से आई बग्‍घी 


बग्घी पर कभी महारानी विक्टोरिया सामंतवाद का झंडा लिए चलती थी...अब नेताजी समाजवाद का झंडा बुलंद कर रहे हैं......ये नया समाजवाद है...नेताजी समझते हैं लेकिन कभी समझाते नहीं।
यूपी के लोग जिस  गोरख पांडे का गीत समझते हैं आज उसे भी याद कर लीजिए...जो समाजवाद शब्द के संवैधानिक होने के मौके पर लिखा गया था, गाया गया था।
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...
नोटवा से आई, बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...
गाँधी से आई, आँधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...
वादा से आई, लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

माली हमले की इनसाइड स्टोरी 


माली की राजधानी बमाको शुक्रवार की सुबह उस वक्त धमाकों और फायरिंग की आवाज से कांप उठी.. जब आतंकियों ने यहां के रेडिसन ब्लू होटल पर हमला बोला.. जिस वक्त होटल में ये हमला हुआ ... उस वक्त वहां 170 लोग मौजूद थे...जिसमें कई भारतीय भी शामिल थे।

जिस आतंकी संगठन पर होटल रेडिसन ब्लू होटल पर हमले का आरोप लग रहा है....उसका नाम अंसार अल-दिन है। अंसाल अल-दिन संगठन माली के उन आतंकी संगठनों में शामिल रहा है जो अलकायदा से पैसे लेकर माली में इस तरह के हमले करता रहा है...इस संगठन का मकसद माली में इस्लामिक शरिया लागू कराना है।

यूट्युब पर अंसार अल-दिन का एक वीडियो भी इसी साल फरवरी में अपलोड किया गया था...जिसमें उसके कुछ सदस्यों को इस्लामिक कानून के बारे में चर्चा करते हुए और उसके हमलों की तस्वीरे हैं।
रेडिसन ब्लू होटल जहां इन आतंकियों ने हमला किया है वो माली के सबसे अच्छे होटलों में से एक हैं और यहां फ्रांस के कुछ पर्यटक भी ठहरे हुए थे... इस वजह से इस हमले को इस्लामिक स्टेट के बदले की नजर से भी देखा जा रहा है।