उम्र बढ़ती जाती है
गिनती घटती जाती है।
यादे बढ़ती जाती है
सांसे घटती जाती है।
उम्मीद और आशाओं की
खुशियों और मजबुरियों की
“कतार” लंबी होती जाती है।
जिंदगी के हर मोड़ का
“नामांकरण” होने लगता है
इसकी-उसकी, भीड़ का
“शक्ल” बदलने लगता है।
घास पर गिरी
बारिश और ओस की बूदों का
“अंतर” समझने लगता है
अर्थ और मतलब
बदलने लगता है
हर शख्स बदलने लगता है।
सड़क पर टक्कर खाए
आंधी की मार से
टूटे दरख्तों के बीच
फंसी नन्ही मैना
एक पक्षी की बच्ची रह जाती है।
हम “हम” नहीं
“तुम” और “मैं” हो जाते हैं
पत्नी के गर्व से जन्मे बच्चे
बस अपने रह जाते हैं।
उम्र बढ़ती जाती है
गिनती घटती जाती है।
यादे बढ़ती जाती है
सांसे घटती जाती है।
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