सोमवार, 20 सितंबर 2010

कभी तो नींद आए

स्याह गहरी रात में
कुछ तो ऐसा संयोग बने
कोई दुर्घटना ही सही
पलकों के ढलने का
कुछ तो सबब बने।

क्या जानूं ख्वाब की ताबीर मैं
पलकों के उठते ही
हर ख्वाब ज़मींदोज़ हुए।

उनींदा आंखें जहर घोलती है
सुकुन-ए-रात में,
ऐ दिल
कभी तो गिरा कुछ अमृत बुंदे
यूं अभी तक है, ये आंखें महज
आग का दरिया।

यहां तुम न आते, तो
तर्क-ए-जिंदगी करते
सहर-सहर तेरा इंतजार न करते
इतनी मुद्दत हुई
कभी कोई खबर नहीं आई।

मोहब्बत इस कदर बेमतलब हुई
कि धड़कनें गई
मगर आवाज़ ना हुई,
तारीखों को क्या दोष दें
कल था आज है कल नहीं होगा
बस एक टीस भर है
ना हो अंजाम कि जिसकी किस्मत,
काश उस किस्से का
कभी आगाज़ ना हो ।।

5 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति ,शुभ कामनाएं । कुछ हट कर खबरों को पढ़ना चाहें तो जरूर पढ़े - " "खबरों की दुनियाँ"


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  3. हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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