स्याह गहरी रात में
कुछ तो ऐसा संयोग बने
कोई दुर्घटना ही सही
पलकों के ढलने का
कुछ तो सबब बने।
क्या जानूं ख्वाब की ताबीर मैं
पलकों के उठते ही
हर ख्वाब ज़मींदोज़ हुए।
उनींदा आंखें जहर घोलती है
सुकुन-ए-रात में,
ऐ दिल
कभी तो गिरा कुछ अमृत बुंदे
यूं अभी तक है, ये आंखें महज
आग का दरिया।
यहां तुम न आते, तो
तर्क-ए-जिंदगी करते
सहर-सहर तेरा इंतजार न करते
इतनी मुद्दत हुई
कभी कोई खबर नहीं आई।
मोहब्बत इस कदर बेमतलब हुई
कि धड़कनें गई
मगर आवाज़ ना हुई,
तारीखों को क्या दोष दें
कल था आज है कल नहीं होगा
बस एक टीस भर है
ना हो अंजाम कि जिसकी किस्मत,
काश उस किस्से का
कभी आगाज़ ना हो ।।
अच्छा प्रयास है
जवाब देंहटाएंhttp://veenakesur.blogspot.com/
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
बहुत बढ़िया कविता|
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ,शुभ कामनाएं । कुछ हट कर खबरों को पढ़ना चाहें तो जरूर पढ़े - " "खबरों की दुनियाँ"
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हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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