वक्त ने पहले भी कभी साथ नहीं दिया था मेरा.... उससे कभी साथ देने की आशा भी नहीं थी। मैं जो कुछ भी हूं, जैसा भी हूं, अच्छा-खराब या फिर घमंडी (जैसा कुछ लोग समझते हैं) बस अपनी ज़िद पर हूं....अच्छा और खराब होने की परिभाषा मुझे मालूम हैं.... लेकिन मैं घमंडी कब हो गया नहीं जानता.... बिल्कुल भी नहीं जानता...वैसे ये उन लोगों का दिया हुआ तोहफा है, जिन्हें मैंने सबसे ज्यादा निहस्वार्थ भाव से प्यार किया...जिनकी सबसे ज्यादा इज्जत की...।
खैर, ये तो होना ही था....मैं नहीं बदल पाया तो क्या हुआ....वही लोग बदल गए जिन्हें मेरे शब्दों से शोहरत मिली थी... और जब वो समझदार हो गए तो कह दिया कि अपने को तीसमार खां न समझो....एक दिन तुम्हारी कलम बांझ हो जाएगी।
“मेरी कलम भी बांझ हो जाएगी”….हर बार उस शख्स के मन्नतों के लिए उपर वाले से दुआ की थी, वो पूरी हो....खुद नास्तिक हूं...फिर भी उसके लिए मन्नते मांगी, उपवास रखा....ऊपरवाले से कुछ न मांगने के प्रण को तोड़ा... और उसी शख्स ने कह दिया तुम्हारी कलम बांझ हो जाए... अब क्या मांगू ऊपरवाले से? क्या सोचूं...कुछ समझ में नहीं आता....। कहते हैं ऊपरवाला सभी के लिए कुछ न कुछ अच्छा जरूर करता है....किसी को रूप देता हैं...किसी को होशियारी, किसी को धनवान बनाता हैं तो किसी को बलवान....कोई धन से अमीर होता है, तो कोई चालबाजियों से.....लेकिन मेरी गिनती तो किसी में नहीं होती... चलो न सही, जिंदगी में कुछ खुशी के लम्हे ही दे देता...तो क्या बिगड़ जाता....उनलोगों के दिलों में थोड़ा प्यार ही भर देता तो क्या होता....प्यार नहीं भी दिया तो इतना दुख नहीं होता...जितना उन दिलों में मेरे लिए नफरत भर दी...जिनकी भी मदद की उसी ने मेरे बर्बाद होने की दुआ की... किसी ने पैसे लेकर साजिश रची तो किसी ने दिल लेकर ठोकर मारी... और कोई दोस्ती का नाम लेकर बदनाम करता रहा....”पाप” का सबब बनाता रहा।
मैं इंसान हूं....अच्छा हूं तो बुरा भी हूं... बचपन से कोशिश की...मैं भी सामनेवाली जमात में शामिल हो जाऊं... मीठी बातें करूं और पीछे से लात मारूं....उन्हीं से दोस्ती के दावे करूं...जिसे दुश्मन समझूं....उन्ही लड़कियों को इज्जत जताऊं, जिनकी नंगेपन की चर्चा करूं..... उन्ही लोगों को तलवे चाटूं जो सबसे बड़े निकम्मे हो.... उन्ही से बात करूं जो बात करने लायक न हो...बहुत कोशिश की...लेकिन एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया... उल्टा सामने वाले ने हमेशा मेरा शिकार किया....कभी प्यार जताकर....कभी दोस्ती का हाथ बढ़ाकर... तो कभी खुदा का वास्ता देकर...बदलना तो दूर की बात उल्टा मैं अपने आप में ही सिकूड़ता चला गया....एक ऐसे खोल में बंद होता गया जहां धूप और हवा का आना निषेध था...लोगों की नजरों में सड़ने लगा था मैं....मेरी सोच सड़ने लगी थी...मैं उनकी तरह नहीं था....सो लात मारकर हर जगह से निकाल दिया गया....किसी को वो शख्स पसंद नहीं आया जो उस जैसा नहीं था... मैं हमेशा भूल जाता हूं कि हर कोई अपने जैसा इंसान ही पसंद करता है... मैं ही कहता हूं हमेशा- दुनिया को जिस रंग के चश्मे से देखो दुनिया वैसी ही दिखाई देती है... फिर सोचता हूं शायद सामने वाला मुझे अपनी तरह का चश्मा लगाकर देखते होगा... इसलिए मैं उसे वैसा ही दिखाई देता हूं....अपने होशियार होने का चश्मा लगाकर वो देखते हैं और कहते हैं अरे तुम तो चालबाज हो.... दुश्मनी का चश्मा लगाकर देखते हैं और कहते हैं तुम्ही मेरे सबसे बड़े दुश्मन हो....पाखंड का चादर ओढ़कर कहते हैं तुम तो घमंडी हो।
हां मैं ये सब हो सकता हूं....लेकिन ये सच मेरा नहीं है....उनलोगों का है-जिन्होंने कभी सच देखा ही नहीं....जो सच देखना ही नहीं चाहते। मेरी गलती बस इतनी है कि मैंने हमेशा चीजों को दूसरी तरफ से देखने की कोशिश की...उसे दूसरे तरीके से समझने की कोशिश की...ये कोशिश मुझे बहुत पसंद है...हां, दुखदायी जरूर है, इससे मैं एकाकी जरूर हो गया हूं....लोगों की नजरों में ये मुझे घमंडी और बिगड़ैल इंसान के रूप में भी खड़ा करता है...लेकिन फिर भी ये मुझे पसंद है...ऊपरवाले ने कुछ नहीं भी दिया तो कोई बात नहीं... उससे अपने लिए कुछ नहीं मांगने का वादा आगे भी जारी जरूर रखूंगा। लेकिन ये भी सच है, उससे मैं उनलोगों के लिए भी मन्नत जरूर मांगूगा जो मेरी नजर में मेरे अपने हैं...जिनसे मैं प्यार करता हूं...जिनकी मैं इज्जत करता हूं....जिनके लिए मैं हर वक्त हर, मोड़ पर खड़ा हूं...क्योंकि मेरा सच मैं जानता हूं... कोई और इसे जानने की कोशिश न करे....और कहता रहे तुम्हारी कलम बांझ हो जाएगी...मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता....कलम रहे न रहे ये घमंड ये सच हमेशा मेरे साथ रहेगा।
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