जाने क्यों ?
अब, मेरी नींदों में तुम नहीं आते
हर बार पलकों से ही लौट जाते !
ख्याल-दर-ख्याल
रहते तो सिर्फ तुम ही हो
मगर फिर भी न जाने क्यों
हर बार अब तुम नहीं आते !
जब भी देखता हूं
अथाह आसमान उड़ते परिंदे,
महशुसता हूं जब भी
आवारा हवाओं को,
ख्याल करता हूं-अपने होने का
न जाने क्यों
उन सितारों में अब तुम नहीं आते !
गुजरता हूं आज भी उन्ही पुरानी राहों से
ठहरता हूं उन्ही चौराहों पर
बसों के नंबर तक नहीं बदले,
पांच की जगह अब कंडक्टर
दस का टिकट काटता है।
लेकिन न जाने क्यों
मैं उसे दस ही देता हूं
मेरे बगल की सीट पर अब तुम नहीं आते !
आईसक्रीम वाला पूछता था उस दिन
“साहब” अब नहीं आते,
गोलगप्पों में अब वो बात कहां
पूरी जिंदगी का स्वाद ही खट्टा गया है
चाय भी बेस्वाद सा
साथ में स्वाद लेने जो अब तुम नहीं आते !
बात करने, साथ लड़ने अब तुम नहीं आते !
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