मैं बड़गद का बूढ़ा पेड़ हूं....लेकिन आप मुझे मत देखिए, मेरे आगोश में पढ़ने वाले इन बच्चों को देखिए...गौर से देखिए-इन बच्चों को चेहरों को.. इनके सपनों को देखिए...उस हौसले को देखिए, जो बेहतर भविष्य के लिए किसी का मोहताज नहीं है......।
हिन्दुस्तान के नक्शे पर झारखंड के चतरा जिले में ये छोटा सा गांव है खांचा डाबर...गांव छोटा है, लेकिन यहां के लोगों की सोच बड़ी है....लड़की हो या लड़का यहां के लोग कोई फर्क नहीं करते... सबको स्कूल भेजते हैं.... स्कूल जी हां स्कूल....आप सोच रहे होंगे यहां कौन सा स्कूल है....सोचिए मत, क्योंकि ये हिन्दुस्तान का स्कूल है....।
एक तरफ इसी देश आईआईटी और आईआईएम भी है...लेकिन आज उनकी बात नहीं है...आज बात है चतरा के डाबर खांचा गांव के इस स्कूल की। जहां ठीकठाक सा एक ब्लैकबोर्ड तक मयस्सर नहीं है...हां कई साल पहले इस देश में ब्लैकबोर्ड योजना जरूर चलाई गई थी...लेकिन यहां के लोग नहीं जानते उस योजना का पैसा गया कहां....।
मैं तो बूढ़ा पेड़ हूं...किसी आंधी तूफान में उखड़ जाऊंगा...डर है कहीं इन मासूम बच्चों पर न गिर पड़ू...फिर मेरी छाया को कौन याद करेगा...एक अभिशाप बनकर याद रह जाऊंगा...उस सरकार की तरह, इस देश के लोकतंत्र की तरह जो गिनता तो नरमुंड है लेकिन सभी के लिए एक जैसा नहीं सोचता किसी को फाइव स्टार तो किसी को गुरबत की जिंदगी बांटता है।



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