कैनवास पर जीवन के अलग-अलग रंगों का मनमोहक चित्र बनाता है वो, रंग भी मुरीद हैं, उनकी इस कला के....रंग प्यार के, रंग अपनेपन के, रंग करूणा के और ना जाने कितने ही ऐसे रंग एहसासों के.... सारे के सारे बेसब्र है उनकी उदभुत कृतियों में हिस्सा बनने को... मैं जिस चित्रकार औऱ शिल्पकार की बात कर रहा हूं उनका नाम है... अकबर पदमसी.... अकबर पदमसी चित्रकार के साथ-साथ शिल्पकार, फोटोग्राफर, लिथोग्राफर और फिल्ममेकर भी हैं....कई कला संगठनों के सदस्य अकबर पदमसी ने भोपाल के भारत भवन संग्रहालय के विकास के लिए अमूल्य योगदान दिया... अकबर पदमसी दुनिया के चंद ऐसे चित्रकारों में शामिल हैं जो चारकोल और पैंसिल के जरिए चित्र बनाने में माहिर हैं.... अकबर पदमसी कला जगत में काफी सक्रिय हैं और दुनियाभर में लगने वाले पैंटिग्स प्रदर्शनी में उनके चित्रों के लिए कलाप्रेमी मुंहमांगी कीमत देने को तैयार रहते हैं। अकबर पदमसी के पैंटिग्स बनाने का तरीका औरों से जुदा हैं.... वो एक ज्यमितिक ग्रिड के आधार पर काम करने के लिए जाने जाते हैं.... मसलन वो पहले चारकोल से एक क्रॉस बनाकर एक खाली कागज पर उथल पुथल पैदा कर देते हैं... इस क्रॉस के आस पास एक छवि उभरती है...। चारकोल के इस्तेमाल के बाद वो ईरेजर यानि रबर इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं.... और इससे जो जगह बनती है, वो चारकोल का विलोम बिंदू—काउंटर प्वाइंट--बन जाती है..... और इसी काउंटर प्वाइंट के लिए अकबर पदमसी दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
मुंबई के जे-जे स्कूल ऑफ आर्ट से 1949 में फाइन आर्ट से डिप्लोमा करने वाले अकबर पदमसी का जन्म 12 अप्रैल 1928 में मुम्बई में हुआ था.... जे जे स्कूल ऑफ आर्ट में अकबर पदमसी ने चित्रकला और मूर्तिशिल्प का बारीक अध्ययन किया... जे जे स्कूल में जब अकबर पदमसी पढ़ाई कर रहे थे... उसी वक्त मुंबई में पीएजी यानी प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप उभरकर आया था जिसका नेतृत्व महान चित्रकार फ्रांसिस न्यूटन सूज़ा कर रहे थे... अकबर पदमसी भी उस ग्रुप में शामिल हो गए.... आपको बता दें कि उस वक्त के तमाम चित्रकार मसलन एस एच राजा, एम एफ हुसैन और एसके बाकरे पीएजी के सदस्य थे.... इस ग्रुप का मकसद कला की नई विधाओं को प्रोत्साहित करना था।
फाइन आर्ट में जे जे स्कूल से डिप्लोमा करने के बाद अकबर पदमसी सैय्यद हैदर रज़ा की सलाह पर 1951 में पेरिस चले गए... और अगले पंद्रह साल तक वहीं पर उन्होंने अपने सपनों को कैनवास और शिल्प के जरिए साकार किया.... वो पंद्रह साल फ्रांस में जरूर रहे लेकिन पश्चिमी कला की ओर उन्होने कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया....हां “पॉल क्लीं” की कला और विचारों का उनपर खासा प्रभाव जरूर पड़ा….।
पेरिस में उनके काम का बड़ा हिस्सा लैंडस्केप, सिटीस्केप, न्यूड्स और हेडस्टीज पर केंद्रित हैं.... फ्रांस में अकबर पदमसी ने कुछ पोर्ट्रेट का भी निर्माण किया... मसलन “ए पोर्ट्रेट ऑफ ए मैन” । उस दौर के उनके सर्वाधिक महत्वपूर्ण कामों में प्रॉफेट श्रृंखला है, जो उन्होने पचास के दशक में बनाई थी। किसी मुस्लिम कलाकार के लिए पेंटिग्स का नाम प्रॉफेट रखना कुफ्र-सरीखा था..... इस्लाम में पैंगबर के किसी भी किस्म की तस्वीर बनाने पर पाबंदी है...हालांकी ईरानी चित्र परंपरा में इस पाबंदी के निरंतर अपवाद रहे हैं... और गुलाम मोहम्मद शेख जैसे भारतीय कलाकारों ने भी इस नियम को तोड़ा है।
हम अकबर पदमसी के प्रॉफेट श्रृंखला को पैगम्बर मोहम्द साहब का अध्ययन नहीं मान सकते हैं...उनकी छवियों में कोई परालौकिक भंगिमाएं नहीं है... भले ही उनके नाम से एक विराट संदर्भ का निर्माण होता है... इन्हें आप ऐसे लोगों की छवियां कह सकते हैं....जिन्हें बर्गमैन की फिल्म ‘विंटर लाइट’ के पैस्टर टॉमस की तरह ईश्वर के अस्तित्व पर ही संदेह है। अकबर पदमसी कहते हैं वो ईश्वर को मानते हैं....लेकिन एक ब्रह्मांडीय शक्ति के रूप में...ना कि एक व्यैक्तिक अस्तित्व रूप में।
पंद्रह साल तक पेरिस में रहने के बाद अकबर पदमसी भारत लौट आए...पिछले छह दशकों में उन्होने जो काम किया है... वो समकालीन भारतीय कला में बेहद महत्वपूर्ण और विशिष्ठ है... अचरज की बात ये है कि उनके विषयों का दायरा बहुत ही सीमित है... पचास के दशक में उन्होंने ‘न्यूड्स’ के अलावा ‘पुरूष सिर’ औऱ ‘स्टिल लाइफ’ बनाए... तो साठ के दशक में आकृतियां और लैंडस्कैप.... सत्तर औऱ अस्सी के दशक में उन्हने खास किस्म के अमूर्त लैंडस्कैप का निर्माण किया, जिन्हें वो मेटास्कैप का नाम देते हैं.... तो नब्बे के दशक में एक बार फिर वो ‘न्यूड्स’ और ‘सिरों’ की और लौट आए... उनके काम का महत्व उनके विषयों में नहीं बल्कि उस चित्रभाषा में हैं...जो उन्होने खूद विकसित की।
अकबर पदमसी के कला जीवन का शुरूआती दौर कुछ-कुछ कमनीय पैंटिग्स के लिए याद किया जाता है... और इसके चलते उन्हें खासी शोहरत भी मली थी...साल 1954 की बात है-मुंबई यानि की तात्कालीन बंबई के जहांगीर आर्ट गैलरी में उनके चित्रों की एक प्रदर्शनी चल रही थी.... प्रदर्शनी में “द लवर्स” नाम का एक चित्र भी लगा हुआ था.. जिसे कुछ लोगों ने अश्लील करार दिया था... बात आलोचना तक ही नहीं रुकी... बल्कि. कांगा नाम का एक पुलिस इंसपेक्टर जबरन उसे हटाने आ पहुंचा और जब अकबर साहब ने उसे हटाने से इनकार किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.... हालांकि बाद में वो कोर्ट से मुकदमा जीत आए थे।
अकबर पदमसी के कला जीवन का शुरूआती दौर कुछ-कुछ कमनीय पैंटिग्स के लिए याद किया जाता है... और इसके चलते उन्हें खासी शोहरत भी मली थी...साल 1954 की बात है-मुंबई यानि की तात्कालीन बंबई के जहांगीर आर्ट गैलरी में उनके चित्रों की एक प्रदर्शनी चल रही थी.... प्रदर्शनी में “द लवर्स” नाम का एक चित्र भी लगा हुआ था.. जिसे कुछ लोगों ने अश्लील करार दिया था... बात आलोचना तक ही नहीं रुकी... बल्कि. कांगा नाम का एक पुलिस इंसपेक्टर जबरन उसे हटाने आ पहुंचा और जब अकबर साहब ने उसे हटाने से इनकार किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.... हालांकि बाद में वो कोर्ट से मुकदमा जीत आए थे।
1993 में अकबर पदम सी की प्रॉफेट श्रृंखला की एक पेंटिग्स को जब निलामी के लिए रखा गया तो इसे अनुमान से चार गुणा ज्यादा कीमत मिली.... और इसके लिए एक करोड़ 25 लाख रूपए की रकम चुकाई गई.... आप इस रकम को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि अकबर पदमसी की बनाई वो पेंटिग कितनी नायाब होगी।
अपने समकालीन चित्रकारों से अकबर पदमसी की खासी दोस्ती रही है...वो महान चित्रकार फ्रांसिस न्यूटन सूज़ा के करीबी रहें हैं.... दिगंवत चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को वो अपने गुरू का दर्जा देते हैं.... बतौर छात्र उन्होंने हुसैन साहब के साथ कई प्रदर्शनियां की हैं....एक अच्छे शिष्य की तरह वो उन्हें कैनवास जमाने में मदद करते और वो दोनों दुनिया भर के विषयों पर चर्चा किया करते..।
दिल्ली स्थित ललित कला अकादमी ने अकबर पदमसी पर एक घंटे के वृतचित्र का भी निर्माण करवाया है... जिसमें उनके कलाजीवन के हर रंग को दर्शाया गया है... खास बात ये है कि इस फिल्म का निर्माण फ्रांस के जिस जानेमाने निर्देशक लोअरा ब्रिजात ने किया है... वो ब्रिजात अकबर पदमसी के दामाद भी हैं.... लोअरा ब्रिजात पहले एक्शन और जासूसी फिल्म बनाया करते थे...लेकिन ललित कला अकादमी के अनुरोध पर उन्होने हुसैन, रज़ा, रामकुमार और अकबर पदमसी पर एक-एक घंटे की जीवनपरक फिल्में बनाई। कला और कलाकारों पर फिल्म बनाने की ब्रिजात की ये पहली कोशिश थी। अकबर पदमसी के जीवन और आधारित एक पुस्तक “वर्क इन लैंग्वेज” भी लिखी गई है।
अकबर पदमसी को मिले सम्मान की बात करें तो 2004 में उन्हे ललित कला अकादमी की तरफ से ललित कला रत्न.... 1998 में मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से कालिदास सम्मान, 1969 में जवाहर लाल नेहरू फैलोशिप से सम्मानित किया जा चुका है।
अकबर पदमसी को मिले सम्मान की बात करें तो 2004 में उन्हे ललित कला अकादमी की तरफ से ललित कला रत्न.... 1998 में मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से कालिदास सम्मान, 1969 में जवाहर लाल नेहरू फैलोशिप से सम्मानित किया जा चुका है।
अकबर पदमसी के व्यक्तित्व कृतित्व के बारे में विस्तृत जानकरी मिली ..... आभार
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