बुधवार, 26 दिसंबर 2012

मैं 'दिल्ली' बोल रही हूं

मैं दिल्ली बोल रही हूं.... आपकी दिल्ली.... इस देश की राजधानी दिल्ली............. हफ्ते की पहली ही सुबह मुझपर इतनी भारी थी की मैं कराह उठी.... और बोलने को मजबूर हो गई।

शनिवार दिन भर रायसीना हिल्स और रविवार को इंडिया गेट पर जो कुछ हुआ... उसका दर्द जरा भी कम नहीं हुआ है अभी तक....... अभी भी पुलिस की लाठियों के निशान मेरे शरीर पर ताजा है...जमा देने वाली सर्दी में पानी की जो बौछाड़ मुझ पर पड़ी उससे मैं अदर तक भीग गई हूं....

मैं दिल्ली हूं, सफदरजंग अस्पताल के बिस्तर पर मैं ही लेटी हूं....उसके साथ जो हुआ उन सब का दर्द मैं शिद्दत से महसूस करती हूं.... पल-पल उसके साथ मैं ही मर रही हूं..... मैं हर उस बेटी का दर्द महसूस करती हूं, जिनके साथ कुछ भूखे भेड़ियों ने नोंच-खसोंट की है...।

रविवार की शाम मेरी शान इंडिया गेट पर प्रदर्शनकारियों का हुजूम था... मेरी इज्जत के लिए, मेरी सुरक्षा के लिए लड़नेवालों की फौज थी....लेकिन रात के धुंधलके में उन सब को जबरन यहां से हटा दिया गया....इंडिया गेट तक आनेवाली हर सड़क को छावनी में तब्दील कर दिया गया और हर जगह इतने जवानों की तैनाती कर दी गई की इंडिया गेट तक पहुंचना नामुमकिन सा हो गया.....।

मेट्रो की नौ स्टेशनों को महज इसलिए बंद कर दिया गया की कोई इंडिया गेट तक ना पहुंच सके...लेकिन मेरे लिए आवाज़ उठाने वालों की आवाज़ वो बंद नहीं कर सके....रविवार की तरह वो हुजूम तो नहीं आज लेकिन मेरे लिए इतने लोग जंतर-मंतर पर जरूर जमा हो गए हैं....जिनकी आवाज़ को कोई दबा नही सकता।

वक्त अपनी रफ्तार से चल रहा था.... नौंवे दिन प्रधानमंत्री को मेरी याद आई, उन्हें लगा की मुझे उनकी आवाज की जरूरत है....मुझे एक भरोसे की जरूरत है.... एक ऐसे भरोसे की जिससे मैं सड़क पर उतनी ही आजादी महसूस कर सके, जितना मैं घर की चारदीवारी में महसूस करती हूं......वो सामने तो आए लेकिन वो भरोस कितना मिला, जरा आप भी तो समझिए।

      
प्रधानमंत्री साहब मुझे क्या भरोसा देते, वो तो खुद अपनी बेटियों का हवाला दे रहे हैं.... कह रहे हैं की कानून अपना काम कर रहा है... जनाब, कानून तो उस दिन से अपना काम कर रहा है जिस दिन से कानून का जन्म हुआ है.... कानून के जन्म से पहले भी इंसानियत थी...लेकिन कुछ हैवानों की वजह से मैं हमशा लहूलुहान होती रही.... इसी दर्द से छूटकारे का भरोसा चाहती थी मैं प्रधानमंत्री से.... लेकिन वो कोई ठोस भरोसा नहीं दे पाए.... विपक्ष में बैठे नेता इस बार भी कुछ कर गुजरने के बदले महज प्रधानमंत्री का विरोध करते रह गए।

सत्ता में बैठे लोगों की नीतियों का विपक्ष हमेशा विरोध करता रहा है... लेकिन वो खुद क्या करते हैं...ये कभी नहीं देखते... मैं बेचारी इन नेताओं की चकरघिन्नी में घूमती रहती हूं,  लहूलुहान होती रहती हूं, सिसकती रहती हूं, सिसकती रहती हूं....।

मेरी सुरक्षा की जिम्मेदारी फिलहाल गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के पास है.... उनके पास भी मैं गई भरोसा मांगने.... लेकिन वो भी अपनी पुलिस की तारीफ में लगे थे...कह रहे हैं मेरे सभी गुनाहगारों को उन्होने गिरफ्तार कर लिया है....वैस आप ही सुनिए...मैं तो कब से सुन रही हूं इनके झूठे दिलासे।

शिंदे साहब कहते हैं, की मुझे सरकार पर भरोसा करना चाहिए, विश्वास करना चाहिए.... लेकिन मैं ये भरोसा कैसे करूं... कैसे करू मैं भरोसा.... जब मेरी सुरक्षा से ज्यादा इन्हें वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा पसंद है.... मुझसे ज्यादा जवानों की तैनाती जब वीवीआईपी लोगों के लिए कर दी गई है तो कैसे करूं मैं भरोसा की मेरी सुरक्षा होगी.....इस वक्त बारह हजार पुलिस कर्मी वीवीआईपी सुरक्षा में लगे हैं,  उनकी तादाद से महज 15 फीसदी ज्यादा सुरक्षाकर्मी मेरी सुरक्षा में है.....वीवीआईपी सिर्फ 575 के करीब हैं और आम लोग सवा करोड़....ऐसे में सीएम शीला दीक्षित भी जवानों की कमी का रोना रोती नजर आती हैं।

अब रात की बात ही ले लीजिए ना.... रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुत्तिन साहब की अगुवानी के लिए इंडिया गेट को छावनी में तब्दील कर दिया गया...कहा गया की मेरी छवी खराब ना हो, इसके लिए जरूरी है प्रदर्शन ना हो... जरूरी है हंगामा ना हो.... मैं जानती हूं ऐसे हंगामे से ऐसे प्रदर्शन से मेरी छवी खराब होती है.... लेकिन मैं क्या करूं, मैं भी नहीं चाहती ये गुस्सा जाहिर करना. पर क्या करूं मैं.... जब मेरी अस्मत को कुछ भूखे भेड़िये नोंचते हैं, तो मेरी रूह कांप उठती है और जब मुझे इंसाफ नहीं मिलता तो दिल-दिमाग बगावत पर उतर आता है... गुस्सा फूट पड़ता है और मैं सड़क पर आ जाती हूं।

पिछले बहत्तर घंटो में 18 बार मुझपर लाठियां चली..... ढाई सौ से ज्यादा आंसू गैस के गोले  दागे गए.... तीन सौ पुलिसकर्मियों ने हजारों युवाओ को बसों में उठा-उठा कर पटका.... छह गाडियों ने कड़क ठंड में 21 बार पानी की धार मारी.... लेकिन हर बार कुछ नये चेहरे हक के सवालों को नये अंदाज में लेकर राजपथ पर कदम-ताल करने के लिये जुड़ते चले गये....मकसद पाने की तालाश में घायल होने के लिये को तैयार दिखे....और जब राजपथ पर ताला लगा दिया गया तो सब जंतर मंतर पर नजर आने लगे...लेकिन इंसाफ की आवाज कुंद नहीं हुई।

जिस इंसाफ की मांग के लिए मैं सड़क पर जद्दोजहद कर रही हूं...अपना सिर तुड़वा रही हूं...वो इंसाफ कहां से मिलेगा मुझे...कौन देगा वो इंसाफ....इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की हर कोशिश में मैं नाकामयाब रही हूं.... दिल्ली की मुख्यमंत्री, पुलिस के आला अधिकारी, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री यहां तक की यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भी बगलें झांकती नजर आती है।

सब के सब बस यही कह रहे हैं कि वो मेरे गुनाहगारों को फांसी दिलाने की मांग करेंगे.... लेकिन मेरी समझ में नहीं आता की मैं जिनसे इंसाफ की मांग कर रही हूं वो किससे इंसाफ मांग करेंगे... मुझे तो यही लगता था की इंसाफ करनेवाले, दिलानेवाले यही लोग हैं.... लेकिन पता नहीं ये किस सत्ता से इंसाफ मांगने में लगे हैं.... प्रधानमंत्री और गृहमंत्रियों को अपनी-अपनी बेटियों की फिक्र हैं..... मेरे लिए तो हर लड़की मेरी अपनी है, मेरी बेटी है, जिसके अंदर मैं खुद रहती हूं... उसकी किसी को कोई फिक्र नहीं...मेरी किसी को कोई फिक्र नहीं।
 
मैं दिल्ली बोल रही हूं.... अब तक मैं सब कुछ चुपचाप सहती आई हूं.... चुपचाप बहुत जख्म  सह लिए मैंने....अब मैंने फैसला किया है...अब चुप नहीं रहूंगी.... कुछ भी हो अपने लिए अपनी हर बेटी के लिए...मैं यूं ही हुंकार भरूंगी....अगर इंसाफ नहीं हुआ तो मेरी ये आवाज़ और तेज होगी.... और तेज होगी।

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