पेरिस का दर्द
मैं पेरिस हूं.....खून से लथपथ, बारुद की गंध और दर्द से बदहवास । मेरी आगोश में बहनेवाली सीन में आज पानी का रंग सुर्ख लाल हो उठा है बिल्कुल इंसानी लहू जैसा।
80 राजाओं का राजतिलक, दो महान साम्राज्यों का राजपाट...पांच गणतंत्र का गठन देखा है मैंने.... दो विश्व युद्ध का दर्द झेला है मैंने...लेकिन आज जितनी तकलीफ कभी नहीं हुई....कभी किसी ने मेरे सीने पर इतने ज़ख्म नहीं दिए जितने इस्लामिक स्टेट के 8 आतंकियों ने दे किए...ये शाम भले ही जलते बारुद की वजह से धुआं-धुआं हो लेकिन मेरे फिजा की हर शाम हमेशा रंगीन रही है।
देखिए मुझे....मैं पेरिस हूं....जिसे दुनिया मोहब्बत के शहर के नाम से जानती है...जहां सुबह का फैशन शाम तक पुराना हो जाता है और शाम होते ही जहां सब मदमस्त हो जाते हैं ।
आन-बान-शान से खड़ा एफिल टावर मेरी पहचान है...जो दिन के उजाले में मेरी गौरवगाथा सुनाता है, तो रात के अंधेरे में हसीन ख्वाब सा एहसास भी दिलाता है।
बासिलिका चर्च और आर्क द त्रिओंफ मेरे शानदार इतिहास की प्रतीक है तो लीडो वो जगह जहां से कैबरे की शुरआत हुई। शांजेली पर शाम के धुंधलके में टहलते हुए लोग अपना दर्द भूल जाते हैं और सीन में दुनिया बदलने की पटकथा लिखी जाती है। लेकिन आज मेरे आंगन की शाम रंगीन नहीं गमगीन है....जहां लोग मोहब्बत के सुरूर में नहीं दर्द के आगोश में हैं।


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