सोमवार, 16 नवंबर 2015

 क्या वीके सिंह ने सच कहा ?

सच हमेशा मीठा नहीं होता...सच से हमेशा सबका भला भी नहीं होता, सच कभी-कभी बेहद कड़वा होता है और इससे कभी-कभी सामाजिक ताने-बाने का जायका भी बिगड़ जाता है, लेकिन सच तो सच है, उसमें घालमेल कैसा ?

प्रवासी भारतीय दिवस प्रोग्राम में शामिल होने अमेरिका गए विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने भी ऐसा ही एक सच कहा है जो बेहद कड़वा है...असहिष्णुता को लेकर उन्होंने कहा कि इन्टॉलरेंस पर बहस गैरजरूरी है, खूब सारे पैसे देकर सरकार के खिलाफ माहौल बनाया गया, ये सिर्फ कुछ राजनीतिक पार्टियों के जरिए बिहार इलेक्शन में वोट पाने के लिए उठाया गया एक मुद्दा था ।

बिना शर्त इस बयान पर हर किसी को आपत्ति हो सकती है....लेकिन इस बयान का चीड़-फाड़ करें तो कई सवाल उठते हैं....और उन सवालों का जवाब टटोलने पर आपका दिल भी यही सवाले करेगा कि क्या वीके सिंह ने सच कहा...मसलन
असहिष्णुता पर बरपा हंगामा अचानक शांत कैसे हो गया ?
क्या देश 10 दिनों में ही सहिष्णु हो गया ?
अब क्यों नहीं लौटाता कोई 'सम्मान' ?
कहीं बिहार चुनाव से इस हंगामे का कोई कनेक्शन तो नहीं था ?


इन सवालों के जवाब आपके पास हैं और आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि वीके सिंह के इस बयान का मतलब क्या है....वैसे आप राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का भी बयान पढ़ लीजिए...जो कहते हैं  संवेदनशील व्यक्ति कभी-कभी विचलित हो जाते हैं, लेकिन भावनाओं को तर्क पर हावी नहीं होने देना चाहिए और असहमति को बहस और चर्चा से व्यक्त किया जाना चाहिए, गौरवशाली भारतीय होने के नाते हमें भारत की परिकल्पना और संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों में विश्वास रखना चाहिए। 

भारत विविधताओं का देश है और यहां सवा सौ करोड़ लोग एक साथ रहते हैं....इतने बड़े देश में एक-आध ऐसी घटनाएं हो जाती है...लेकिन इसके सामाजिक तानेबाने पर सवाल तब उठते हैं...जब कुछ समझदार और भरोसेमंद लोग ही भरोसा खत्म होने की बात करने लगते हैं...देश के असहिष्णु होने पर हंगामा शुरु कर देते हैं।

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