शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

 सियासत में 'तेजस'

सियासत की डगर कभी सीधी नहीं होती....अगर होती तो उसकी ऐसी तस्वीर ना होती...। सियासतदान हमेशा टेढ़े-मेढ़े रास्ते से आगे बढ़ते हुए अपनी मंजिल तलाशते हैं...और उसी तलाश में कभी अपने पराए हो जाते हैं तो कभी पराए अपनों से अच्छे लगने लग जाते हैं।

लालू प्रसाद और नीतीश कुमार....शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल.. ममता बनर्जी और सीताराम येचुरी, हेमंत सोरेन और बाबू लाल मरांडी... लंबी फेहरिस्त है ...उन चेहरों की जो लालू और नीतीश की तरह सियासी नदी के दो किनारे थे ..लेकिन भारत के सियासी आसमान में मोदी की एंट्री मारते ही...सभी एक किनारे पर जमा होते दिखाई दिए ......इस सियासी मिलन के मायने अलग हो सकते हैं...  सियासी डगर अलग हो सकती है लेकिन मंजिल एक है।

तेजस्वी और तेज प्रताप दो नाम भर नहीं है....ये लालू प्रसाद के लिए तेजस की तरह हैं....जिसके लिए उन्होंने अपने सबसे बड़े सियासी दुश्मन को गले लगा लिया....सियासत की पूरी परिभाषा बदल दी, नदी के दो किनारों को मिलने पर मजबूर कर दिया। मजबूरी के मिलन की ऐसी सुखद तस्वीर के जो गवाह हैं...और जो दूर से देख रहे हैं....हर कोई इन तस्वीरों में नफा-नुकसान तलाश रहे होंगे...मसलन

  • पश्चिम बंगाल में अगर लेफ्ट और ममता साथ आ जाएं तो ? 
  • दिल्ली में कांग्रेस फिर केजरीवाल के साथ आ जाए तो ?
  • झारखंड में बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन मिल जाएं तो ?

इन सवालों के जवाब की ताबीर इस ऐतिहासिक शपथग्रहण जैसी हो सकती है, इतना ही नहीं यहां जिस लक्ष्य के लिए सब जमा हुए हैं...उसपर भी गौर कर लीजिए।

                          सत्ता का महासंग्राम-2019 
( कांग्रेस + जेडीयू + आरजेडी + लेफ्ट + टीएमसी + जेएमएम +  जेडीएस + आईएनएलडी )


ये कतार और लंबी हो सकती है...क्योंकि बिना यूपी के दिल्ली की जंग नहीं होती...और यूपी के लिए मुलायम और मायावती एक दूसरे को साधने में लगे हैं...साथ आए तो नीतीश और लालू जैसी तस्वीर बनेगी....अलग रहे तो अधर में भविष्य....और माया-मुलायम साथ हो गए और उनलोगों ने इस मंच जैसा कोई मंच सजाया तो एनडीए का क्या हस्र होगा....उसका अंदाजा लालू के बगल में बैठे वैंकेया नायडू को जरुर हो गया होगा।

इसलिए हमने पहले ही कहा था तेजस्वी और तेज प्रताप नाम भर नहीं हैं...ये लालू के तेजस हैं...जिनके लिए वो बिसात पर बिसात बिछाए जा रहे हैं...अब ये अळग बात है कि उनके साथ बैठे नीतीश भी अपनी जेब में सियासी मोहरे लिए बैठे हैं।

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