शनिवार, 21 नवंबर 2015

 जन्मदिन का 'समाजशास्त्र'

 

पिछले कुछ सालों से जब भी मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन आता है...समाजवाद सुरीला हो उठता है। कभी रामपुर तो कभी सैफई की फिज़ा में धूल-मिट्टी और मेहनत की महक की जगह कृत्रिम इत्र और नेताजी के स्वागत में आए फूलों की महक घुल जाती है....तो कभी माधुरी की थिरकन और सलमान के अंदाज-ए-बयां से उत्तरप्रदेश के लोगों का दिल गार्डन-गार्डन हो उठता है।

उत्तरप्रदेश के मुखिया के पिता हैं वो, जन्मदिन का जश्न शाही तो होना ही चाहिए........धूप में फूलों की थाल लिए महिलाओं और बच्चों की इन तस्वीरों के अलावे स्कूल छोड़कर आए सैकड़ों छात्रों की भी तस्वीर है...जो नेताजी की अगुवानी करने आते हैं...उन्हें जन्मदिन की बधाई देने आते हैं।

ये समाजवाद का काफिला है...जहां हवा से फूल बरसते हैं....ढाई करोड़ का मंच सजता है...और तो और नेताजी के लिए 77 किलो का केक मंगाया जाता है....जश्न समाजवाद का है, उसके समाजशास्त्र पर भी जरा ध्यान दीजिए ।
एक लाख देशी-विदेशी मेहमानों की मेजबानी
एथलेटिक्स स्टेडियम में 2.5 करोड़ की लागत से मंच
नेताजी के 77वें जन्मदिन के लिए 77 किलो का केक
आगरा के होटल आईटीसी मुगल की कैटरिंग
मनोरंजन के लिए 200 कलाकारों की टीम
ए.आर. रहमान, जावेद अली और हरिहरन का परफॉर्मेंस 
कानपुर से मंगाए गए 15 क्विंटल बनारसी लड्डू का भोज
नेताजी के स्टेडियम पहुंचने के लिए लंदन से आई बग्‍घी 


बग्घी पर कभी महारानी विक्टोरिया सामंतवाद का झंडा लिए चलती थी...अब नेताजी समाजवाद का झंडा बुलंद कर रहे हैं......ये नया समाजवाद है...नेताजी समझते हैं लेकिन कभी समझाते नहीं।
यूपी के लोग जिस  गोरख पांडे का गीत समझते हैं आज उसे भी याद कर लीजिए...जो समाजवाद शब्द के संवैधानिक होने के मौके पर लिखा गया था, गाया गया था।
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...
नोटवा से आई, बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...
गाँधी से आई, आँधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...
वादा से आई, लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई।

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