"नए मिशन पर अमित शाह"
सियासत में हर्फ़-हर्फ़ को शब्द और शब्द-शब्द से जीत की गाथा लिखना जिनकी शख्सियत है.......दुनिया जिन्हें आज के चाणक्य के तौर जानती है और जिन्हें अमित शाह के नाम से पहचानती है ।
वो लाखों-लाख बीजेपी कार्यकर्ताओं की आवाज़ हैं।
अपराजेय और सियासी जीत के सूत्रधार हैं ।
सियासी मैनेजमेंट में चौंकाने तक माहिर हैं।
वो अच्छे दिनों की गारंटी हैं ।
मोदी को प्रधानमंत्री बनाने वाले हैं ।
बीजेपी के सबसे बड़े नायक हैं।
और, वर्तमान के चाणक्य हैं।
अपराजेय और सियासी जीत के सूत्रधार हैं ।
सियासी मैनेजमेंट में चौंकाने तक माहिर हैं।
वो अच्छे दिनों की गारंटी हैं ।
मोदी को प्रधानमंत्री बनाने वाले हैं ।
बीजेपी के सबसे बड़े नायक हैं।
और, वर्तमान के चाणक्य हैं।
सियासत से दूर व्यापारिक घराने में पले-बढ़े अमित 'अनिलचंद्र' शाह कैसे चाणक्य बने......कैसे वो बीजेपी के लिए अच्छे दिनों की गारंटी बनकर उभरे......कैसे उन्होंने नरेंद्र मोदी को पहले गुजरात के मुख्य्मंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया और कैसे उनके लिए दिल्ली में तख्त-ओ-ताज सजाया...इसे जानना समझना है... तो 34 साल पहले 1982 के दौर में लौटना होगा, उस दौर को समझना होगा...जब आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मुलाकात हुई थी...।
34 साल पहले
34 साल पहले
अहमदाबाद, गुजरात
बात 1982 की है कई साल बाद अमित शाह की मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुई थी...उन दिनों अमित शाह प्लास्टिक पाइप का अपना पारिवारिक व्यापार संभाल रहे थे और नरेंद्र मोदी हिमालय से लौटकर अहमदाबाद में पार्टी का काम-काज देख रहे थे....मोदी से मिलने के बाद अमित शाह ने उनके सामने पार्टी से जुड़ने की बात कही और मोदी उन्हें लेकर बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला के पास पहुंचे...वाघेला उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं मैं पार्टी ऑफिस में ही बैठा था, मोदी अपने साथ एक लड़के को लेकर मेरे पास आए और कहा कि ये अमित शाह हैं, प्लास्टिक के पाइप बनाने का व्यापार करते हैं, आप इन्हें पार्टी का कुछ काम दे दीजिए ।
शंकर सिंह वाघेला ने अमित शाह को अपने पास रख लिया और यहीं से शुरु हुई अमित शाह के चाणक्य बनने की कहानी ।
साल 1991
गांधीनगर, गुजरात
1991 में लालकृष्ण आडवाणी की गांधीनगर से जीत अमित शाह के शानदार चुनावी प्रबंधन का नतीजा था...
साल 1996
गांधीनगर, गुजरात
इसी तरह का प्रबंधन अमित शाह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए भी दिखाया...जब 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने गांधीनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा ।
इन दोनों चुनावों के बाद अमित शाह गुजरात में बीजेपी के सबसे बड़े रणनीतिकार बनकर उभरे...और इस दौरान उनकी नरेंद्र मोदी से करीबी भी बढ़ती गई और दोनों के रिश्ते मजबूत होते गए..।
गुजरात में सहकारी संस्थाओं और गुजरात क्रिकेट संघ को कांग्रेस के मजबूत हाथों से निकालने के साथ-साथ छोटे-बड़े 42 चुनावों में लगातार जीत हासिल कर अमित शाह सफलता के उच्चतम शिखर की ओर कदम बढ़ाते रहे....नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात की जमीन तैयार करते रहे
अक्टूबर 2001
गांधीनगर, गुजरात केशूभाई पटेल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का दबाव और उनकी जगह नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे अमित शाह की ही रणनीति थी...क्योंकि अमित शाह जानते थे कि नरेंद्र मोदी ही वो शख्स हैं...जो भूकंप पीड़ित गुजरात को डेवलपमेंट का रोल मॉडल बना सकते हैं...नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री बनते ही आपणुं गुजरात-आगवुं गुजरात यानि (हमारा गुजरात-विशिष्ट गुजरात) का जो नारा दिया...उसमें अमित शाह की छाप नजर आती है...जो खुद विशिष्ट से अति विशिष्ट होते जा रहे थे....।
मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी गुजरात का विकास करते रहे और इधर अमित शाह उनके लिए दिल्ली का रास्ता बनाते रहे....इस दौरान उनपर फर्जी एनकाउंटर जैसे दाग भी लगे, तड़ीपार भी होना पड़ा लेकिन वो अपने मकसद से डिगे नहीं....।
अमित शाह जानते थे गुजरात से दिल्ली का सफर बिना उत्तरप्रदेश गए असंभव है......लिहाजा उन्होंने 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तरप्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष पद की चुनौती स्वीकार कर ली......और 2014 के महायज्ञ की महातैयारी शुरु कर दी ।
19 मई 2013
लखनऊ, उत्तरप्रदेश उत्तरप्रदेश बीजेपी के प्रभारी बनने की खबर ने यूपी के पार्टी कार्यकर्ताओं को जोश से भर दिया....बीजेपी कार्यकर्ता कुछ कर गुजरने की चाहत लिए 2014 के महायज्ञ लिए तैयार होने लगे... और उधर अमित शाह 2014 के लिए प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करने की तैयारी में लगे रहे ।
यूपी में सगंठन मजबूत बनाने के साथ-साथ अमित शाह दिल्ली के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी को पुख्ता बनाने में लगे हुए थे....ये रणनीति सफल हुई गोवा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ।
9 जून 2013, गोवा पिछले 6 महीने से जो कयास लगाए जा रहे थे वही हुआ बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में...जहां नरेंद्र मोदी को बीजेपी प्रचार अभियान की कमान सौंप दी गई....पार्टी के इस फैसले से पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को झटका लगा....इस फैसले के बाद सबसे मजबूत साथी नीतीश कुमार ने अपना रास्ता अलग कर लिया......लेकिन अमित शाह को यकीन था...कि उनकी ये सियासी चाल कभी नाकामयाब नहीं हो सकती....।
12 जून 2013
लखनऊ, उत्तरप्रदेश यूपी प्रभारी के तौर पर पहली बार अमित शाह लखनऊ पहुंचे और यहां नेता-कार्यकर्ताओं की मीटिंग में मिशन 273 प्लस का ऐलान कर दिया...इस ऐलान के साथ ही साफ हो गया कि बीजेपी के अच्छे दिन आनेवाले हैं, मोदी आनेवाले हैं।
प्रदेश स्तर से पोलिंग बूथ तक संगठन का अमित शाह ने काया कल्प कर दिया....और एक ऐसी चाल चली जिससे आने वाले दिनों में पूरे उत्तरप्रदेश में भगवा ही भगवा नजर आनेवाला था....
13 मार्च, 2014 नरेंद्र मोदी ने बडोदरा के साथ-साथ वाराणसी से भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया
मोदी को अमित शाह की रणनीति पर पूरा भरोसा था और वो जानते थे इस फैसले का असर उत्तरप्रदेश के साथ-साथ बिहार पर भी पड़नेवाला है..।
ये अमित शाह का मास्टर स्ट्रोक था....ऐसा मास्टर स्ट्रोक जिसने उन्हें सियासत का सिंघम बना दिया ।
सियासत के इस सिंघम ने कमाल कर दिया....सारे सियासी फॉर्मूले धरे के धरे रह गए...अमित शाह के एक ही मास्टर स्ट्रोक ने बीजेपी को सत्ता में और नरेंद्र मोदी को सत्ता के शिखर तक पहुंचा दिया।
बीजेपी को इस चुनाव में अकेले 282 सीटें मिली जिसमें उत्तरप्रदेश में 80 में से 71, बिहार में 40 में से 22, उत्तराखंड में 5 से 5, हरियाणा में 10 में से 7, झारखंड में 14 में से 12, मध्यप्रदेश में 29 में से 27, महाराष्ट्र में 48 में से 23, राजस्थान में 25 में से 25, दिल्ली में 7 में से 7, छत्तीसगढ़ में 11 में से 10 और गुजरात में 26 में से 26 सीटों के साथ-साथ छोटे-छोटे प्रदेशों में भी भारी सफलता मिली
9 जुलाई 2014लोकसभा चुनाव में इस सफलता ने निर्विवाद रूप से अमित शाह को बीजेपी के चाणक्य के तौर पर स्थापित कर दिया और 9 जुलाई 2014 को अमित शाह को बीजेपी का सर्वेसर्वा बना दिया ।
पार्टी ने अमित शाह पर भरोसा दिखाया और अमित शाह भी उस भरोसे पर खरे उतरे....अमित शाह के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनावों में झारखंड में 37, जम्मू एंड कश्मीर में 25, हरियाणा में 47, महाराष्ट्र में 122 सीटें जीतकर इन प्रदेशों में पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया.......हालांकि दिल्ली और बिहार में मिली हार की वजह से अमित शाह के चुनावी प्रबंधन पर सवाल जरुर खड़े हुए लेकिन हर कोई जानता है बिहार में वोट जाति के नाम पर पड़ते हैं और लालू के साथ आकर नीतीश ने जातिगत समीकरण का जो मजबूत खाका तैयार किया, उससे पार पाना आसान नहीं था बिहार चुनाव में हार के लिए स्थानीय नेता भी जिम्मेदार थे जिन्होंने पार्टी के लिए उतनी मेहनत नहीं की जितनी जरुरत थी....।
दिल्ली और बिहार में लगे दाग के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और संघ का भरोसा अमित शाह पर उसी तरह कायम है...जैसे 2013 और 2014 में कायम था ।
नरेंद्र मोदी को यूपी के रास्ते देश भर में परचम फहराने के लिए एक सेनापति की जरूरत थी...और उनके लिए ये चुनाव मुश्किल नहीं था ..क्योंकि उनके पास मौजूद थे उनके खास शाह ...
मोदी के शाह ने लोकसभा चुनाव में यूपी की चुनावी कमान तो संभाल ली थी ... लेकिन शाह के सामने थी अबतक की सबसे बड़ी चुनौती.. और वो चुनौती थी यूपी फतह की ...80 लोकसभा सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में तब बीजेपी के महज 10 सांसद थे....
कागज पर तो संगठन मजबूत था लेकिन जमीन पर कार्यकर्ता नदारद थे ...और तो और नेता भी पार्टी का झंडा बुलंद करने की जगह अपनी जमीन पक्की करने के लिए गुटबंदी में व्यस्त थे ।
लेकिन एक दशक से गुजरात में मोदी की विजय पताका फहराने वाले सेनापति अमित शाह भला हार कहां मानने वाले थे ....
चुनौती कठिन थी लेकिन साबरमती की भूमि पर कमाल दिखाने वाले शाह ने मां गंगा से आशीर्वाद लेने की ठान ली थी ...
शाह के लिए यूपी की जमीन भले ही नई हो लेकिन उनके पास था करीब 3 दशक का रणनीतिक अनुभव और इन सबसे आगे जा कर कार्यकर्ताओं से उनके सीधे संवाद की कला...
16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ ही यूपी पर केसरिया पताका फहरा रहा था ...बीजेपी ने शाह की अगुवाई में 71 सीटें जीत कर नरेंद्र मोदी के दिल्ली कूच का रास्ता साफ कर दिया था ..अभिभूत से नरेंद्र मोदी ने भी तब माना था कि ये कमाल सिर्फ अमित शाह ही कर सकते हैं...।
अमित शाह पर नरेंद्र मोदी का भरोसा कोई नया नहीं है ... ये बात साल 1982 की है जब नरेंद्र मोदी से उनकी पहली मुलाकात हुई थी...
1995 में केशुभाई के मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी-शाह की जोड़ी ने गुजरात से कांग्रेस के सफाए के लिए एकजुट कोशिश शुरू की थी...नरेंद्र मोदी अमित शाह की संगठन की क्षमता से बखूबी परिचित हो चुके थे ...तभी तो 2002 में गुजरात की सत्ता संभालने के बाद अमित शाह को उन्होंने गृहमंत्री बनाया ...
लगभग दो दशक तक शाह ने गुजरात में बीजेपी के मुख्य रणनीतिकार की भूमिका निभाई ..अब मौका था पूरे देश में शाह की संगठन क्षमता के इस्तेमाल की ...और लोकसभा जीतने के बाद नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी बीजेपी की कमान सौंपी ....
कार्यकर्ताओं से नजदीकी अमित शाह का ब्रम्हास्त्र है ...आरएसएस के झंडाबरदार अमित शाह ने वार्ड सचिव से संगठन में शुरुआत की थी... और वे कार्यकर्ताओं की समस्या से लेकर उनके बेहतर इस्तेमाल को बखूबी जानते हैं ... कार्यकर्ताओं से जुड़ाव का ही करिश्मा है कि जिसने बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा दिलवाया है।
चुनाव प्रबंधन में अमित शाह को प्रमोद महाजन की तरह की महारत हासिल है ... माना जाता है कि अटल-आडवाणी युग में पार्टी जिस तरह से महाजन पर निर्भर थी शायद उससे भी ज्यादा आज शाह के प्रबंधन पर निर्भर है ...चुनावी प्रबंधन में बूथ कमेटी पर शाह का सबसे ज्यादा जोर रहता है ...जो आरएसएस की शाखा परंपरा से लिया गया है ...
करीब एक दशक तक गुजरात में मोदी मंत्रिमंडल का अहम हिस्सा होने के बावजूद उन्होंने हमेशा खुद को लो प्रोफाइल ही रखा ... चुनाव की गहमा गहमी के बीच भी वे बिल्कुल सादगी से अपना काम करते रहे ...
अमित शाह के बारे में मशहूर है कि वे कार्यकर्ताओं का एक भी फोन मिस नहीं करते... कार्यकर्ताओं के साथ हर मुद्दे पर लंबी बात करना उनकी पुरानी आदत है... बीजेपी के कई बड़े नेता उनकी इस क्षमता को आज भी सलाम करते हैं...
अमित शाह की एक और खासियत काम को लेकर उनका प्रैक्टिकल एप्रोच है ..तभी तो अपनी सादगी और काम के लिए मशहूर हस्तियां भी उनकी नेतृत्व क्षमता को सलाम करती हैं ।
अमित शाह ने आरएसएस की विचारधारा को जितना आत्मसात किया...वक्त की नजाकत को भी उन्होंने उतनी ही शिद्दत से समझा.. ...और इसी का नतीजा है चुनाव के दौरान उनका वॉर रूम कॉन्सेप्ट ...अमित शाह की इस रणनीति ने हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में कमल खिलाया तो जम्मू कश्मीर में भी पहली बार बीजेपी की सरकार बनाई... लेकिन शाह के सामने अभी भी कई बड़ी चुनौतियां हैं तो बीजेपी की उम्मीद अभी भी शाह पर टिकी है ।।।।
एक के बाद एक लगातार जीत ... 2014 अमित शाह के लिए बेहद खास रहा ...जब उनकी अगुआई में बीजेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में विजय पताका फहराई... झारखंड को भी लगभग एक दशक बाद स्थिर सरकार का तोहफा दिया ... तो उनकी अगुआई में जम्मू कश्मीर में पहली बार पीडीपी के साथ मिलकर बीजेपी की सरकार बनी......
लेकिन 2015 की लौटती सर्दी अमित शाह के लिए मुश्किल पैदा करने वाली साबित हुई ...जिस दिल्ली से पूरे देश में बीजेपी की सरकार चलती है ... वहीं की विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एक नई सियासी पार्टी आम आदमी पार्टी के हाथों मात मिली...तो लगभग 8 महीने बाद देश के एक दूसरे महत्वपूर्ण प्रदेश बिहार में... विधानसभा चुनाव में भी शाह के नेतृत्व में बीजेपी जीत से दूर रह गई ...
बिहार चनाव की हार पार्टी के लिए बड़ा झटका था लेकिन इस मुद्दे पर पार्टी एक जुट है...इसे बीजेपी के दिग्गज भी मानते हैं और ये भी स्वीकार करते हैं कि हार सामूहिक नेतृत्व की विफलता थी.
बिहार की हार के लिए पार्टी उन वजहों को भी जिम्मेदार मानती है . जिसने बिहार की जनता को गुमराह किया ... संगठन में काफी सालों तक काम करने वाले कई नेता मानते हैं कि विकास की राजनीति पर बिहार की जातीय राजनीति हावी हो गई ...और पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा....
नरेंद्र मोदी की अगुआई में मोदी सरकार करीब एक तिहाई कार्यकाल पूरा कर चुकी है ...तो इस साल देश में कई महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव हैं...और बीजेपी की नजर उन राज्यों पर है जहां अब तक उनकी उपस्थिति ना के बराबर रही है ... पार्टी की नजर पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तर पूर्व तक पर है ।
पार्टी को पिछले साल दो बड़ी हार भले ही झेलनी पड़ी हो लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छूटा है ... पार्टी असम में अच्छी हालत में है ..और शायद पहली बार राज्य में सरकार बनाने के बेहद करीब भी ।
एक के बाद एक 4 प्रदेशों में विजय पताका लहरानेवाले अमित 'अनिलचंद्र' शाह अब नए मिशन पर हैं......इस नए मिशन पर इसबार उनका सामना पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी में मुलायम सिंह यादव से होना है........तो असम, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी, के साथ-साथ पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी उन्हें अपनी रणनीति का कौशल दिखाना है....।
'मिशन 2016'
असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पुडुचेरी
इस साल अमित शाह के सामने सबसे पहली और बड़ी चुनौती असम विधानसभा चुनाव है...जिसके लिए प्रचार अभियान का काम शुरु भी हो चुका है...और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां का चुनावी दौरा भी कर चुके हैं..।
126 सीटों वाले असम विधानसभा के लिए अमित शाह ने 84 प्लस का लक्ष्य रखा है...और इसके लिए असम गण परिषद समेत कई दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पर बात चल रही है ।
'मिशन बंगाल'
इसी साल पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं....और ममता बनर्जी से सियासी जंग के लिए अमित शाह पिछले डेढ़ साल से तैयारी में लगे हैं....बीजेपी को दिल्ली में हरा चुके केजरीवाल और बिहार में हरा चुके लालू-नीतीश दोनों ममता बनर्जी को चुनावी टिप्स देने में लगे हैं...ऐसे में अमित शाह को सतर्क रहना होगा.....और किसी भी कीमत पर उन्हें पश्चिम बंगाल के लोगों का दिल जीतना होगा।
मिशन 2017
उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर
2016 में अमित शाह जो रणनीति बनाएंगे और जितना सफल होंगे उसी आधार पर 2017 की तैयारी मुकम्मल होगी...ममता बनर्जी को अगर अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में घेर लिया तो फिर यूपी की राह आसान हो जाएगी....हालांकि उत्तरप्रदेश में अखिलेश-मुलायम के साथ-साथ मायावती भी उनके लिए बड़ी चुनौती हैं ।
उत्तरप्रदेश के बाद पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में भी विधानसभा चुनाव 2017 में ही होनेवाले हैं...और यूपी की हार-जीत का असर वहां भी देखने को जरूर मिलेगा....वैसे उत्तराखंड और गोवा में बीजेपी मजबूत स्थिति में है और वहां चुनाव जीतना बीजेपी के लिए कोई मुश्किल नहीं....मुश्किल है तो पंजाब..।
वैसे, मुश्किलों को आसान और परिस्थितियों को अपने माकूल बनाना अमित शाह की फितरत रही है...और इसी पर भरोसा कर उन्हें फिर से भारतीय जनता पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है....देखना है इस बार अमित शाह क्या गुल खिलाते हैं और ममता-मुलायम से कैसे पार पाते हैं ।
शंकर सिंह वाघेला ने अमित शाह को अपने पास रख लिया और यहीं से शुरु हुई अमित शाह के चाणक्य बनने की कहानी ।
साल 1991
गांधीनगर, गुजरात
1991 में लालकृष्ण आडवाणी की गांधीनगर से जीत अमित शाह के शानदार चुनावी प्रबंधन का नतीजा था...
साल 1996
गांधीनगर, गुजरात
इसी तरह का प्रबंधन अमित शाह ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लिए भी दिखाया...जब 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने गांधीनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा ।
इन दोनों चुनावों के बाद अमित शाह गुजरात में बीजेपी के सबसे बड़े रणनीतिकार बनकर उभरे...और इस दौरान उनकी नरेंद्र मोदी से करीबी भी बढ़ती गई और दोनों के रिश्ते मजबूत होते गए..।
गुजरात में सहकारी संस्थाओं और गुजरात क्रिकेट संघ को कांग्रेस के मजबूत हाथों से निकालने के साथ-साथ छोटे-बड़े 42 चुनावों में लगातार जीत हासिल कर अमित शाह सफलता के उच्चतम शिखर की ओर कदम बढ़ाते रहे....नरेंद्र मोदी के लिए गुजरात की जमीन तैयार करते रहे
अक्टूबर 2001
गांधीनगर, गुजरात केशूभाई पटेल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का दबाव और उनकी जगह नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे अमित शाह की ही रणनीति थी...क्योंकि अमित शाह जानते थे कि नरेंद्र मोदी ही वो शख्स हैं...जो भूकंप पीड़ित गुजरात को डेवलपमेंट का रोल मॉडल बना सकते हैं...नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री बनते ही आपणुं गुजरात-आगवुं गुजरात यानि (हमारा गुजरात-विशिष्ट गुजरात) का जो नारा दिया...उसमें अमित शाह की छाप नजर आती है...जो खुद विशिष्ट से अति विशिष्ट होते जा रहे थे....।
मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी गुजरात का विकास करते रहे और इधर अमित शाह उनके लिए दिल्ली का रास्ता बनाते रहे....इस दौरान उनपर फर्जी एनकाउंटर जैसे दाग भी लगे, तड़ीपार भी होना पड़ा लेकिन वो अपने मकसद से डिगे नहीं....।
अमित शाह जानते थे गुजरात से दिल्ली का सफर बिना उत्तरप्रदेश गए असंभव है......लिहाजा उन्होंने 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तरप्रदेश में बीजेपी अध्यक्ष पद की चुनौती स्वीकार कर ली......और 2014 के महायज्ञ की महातैयारी शुरु कर दी ।
19 मई 2013
लखनऊ, उत्तरप्रदेश उत्तरप्रदेश बीजेपी के प्रभारी बनने की खबर ने यूपी के पार्टी कार्यकर्ताओं को जोश से भर दिया....बीजेपी कार्यकर्ता कुछ कर गुजरने की चाहत लिए 2014 के महायज्ञ लिए तैयार होने लगे... और उधर अमित शाह 2014 के लिए प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी को प्रोजेक्ट करने की तैयारी में लगे रहे ।
यूपी में सगंठन मजबूत बनाने के साथ-साथ अमित शाह दिल्ली के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी को पुख्ता बनाने में लगे हुए थे....ये रणनीति सफल हुई गोवा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में ।
9 जून 2013, गोवा पिछले 6 महीने से जो कयास लगाए जा रहे थे वही हुआ बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में...जहां नरेंद्र मोदी को बीजेपी प्रचार अभियान की कमान सौंप दी गई....पार्टी के इस फैसले से पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को झटका लगा....इस फैसले के बाद सबसे मजबूत साथी नीतीश कुमार ने अपना रास्ता अलग कर लिया......लेकिन अमित शाह को यकीन था...कि उनकी ये सियासी चाल कभी नाकामयाब नहीं हो सकती....।
12 जून 2013
लखनऊ, उत्तरप्रदेश यूपी प्रभारी के तौर पर पहली बार अमित शाह लखनऊ पहुंचे और यहां नेता-कार्यकर्ताओं की मीटिंग में मिशन 273 प्लस का ऐलान कर दिया...इस ऐलान के साथ ही साफ हो गया कि बीजेपी के अच्छे दिन आनेवाले हैं, मोदी आनेवाले हैं।
प्रदेश स्तर से पोलिंग बूथ तक संगठन का अमित शाह ने काया कल्प कर दिया....और एक ऐसी चाल चली जिससे आने वाले दिनों में पूरे उत्तरप्रदेश में भगवा ही भगवा नजर आनेवाला था....
13 मार्च, 2014 नरेंद्र मोदी ने बडोदरा के साथ-साथ वाराणसी से भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया
मोदी को अमित शाह की रणनीति पर पूरा भरोसा था और वो जानते थे इस फैसले का असर उत्तरप्रदेश के साथ-साथ बिहार पर भी पड़नेवाला है..।
ये अमित शाह का मास्टर स्ट्रोक था....ऐसा मास्टर स्ट्रोक जिसने उन्हें सियासत का सिंघम बना दिया ।
सियासत के इस सिंघम ने कमाल कर दिया....सारे सियासी फॉर्मूले धरे के धरे रह गए...अमित शाह के एक ही मास्टर स्ट्रोक ने बीजेपी को सत्ता में और नरेंद्र मोदी को सत्ता के शिखर तक पहुंचा दिया।
बीजेपी को इस चुनाव में अकेले 282 सीटें मिली जिसमें उत्तरप्रदेश में 80 में से 71, बिहार में 40 में से 22, उत्तराखंड में 5 से 5, हरियाणा में 10 में से 7, झारखंड में 14 में से 12, मध्यप्रदेश में 29 में से 27, महाराष्ट्र में 48 में से 23, राजस्थान में 25 में से 25, दिल्ली में 7 में से 7, छत्तीसगढ़ में 11 में से 10 और गुजरात में 26 में से 26 सीटों के साथ-साथ छोटे-छोटे प्रदेशों में भी भारी सफलता मिली
9 जुलाई 2014लोकसभा चुनाव में इस सफलता ने निर्विवाद रूप से अमित शाह को बीजेपी के चाणक्य के तौर पर स्थापित कर दिया और 9 जुलाई 2014 को अमित शाह को बीजेपी का सर्वेसर्वा बना दिया ।
पार्टी ने अमित शाह पर भरोसा दिखाया और अमित शाह भी उस भरोसे पर खरे उतरे....अमित शाह के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनावों में झारखंड में 37, जम्मू एंड कश्मीर में 25, हरियाणा में 47, महाराष्ट्र में 122 सीटें जीतकर इन प्रदेशों में पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया.......हालांकि दिल्ली और बिहार में मिली हार की वजह से अमित शाह के चुनावी प्रबंधन पर सवाल जरुर खड़े हुए लेकिन हर कोई जानता है बिहार में वोट जाति के नाम पर पड़ते हैं और लालू के साथ आकर नीतीश ने जातिगत समीकरण का जो मजबूत खाका तैयार किया, उससे पार पाना आसान नहीं था बिहार चुनाव में हार के लिए स्थानीय नेता भी जिम्मेदार थे जिन्होंने पार्टी के लिए उतनी मेहनत नहीं की जितनी जरुरत थी....।
दिल्ली और बिहार में लगे दाग के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और संघ का भरोसा अमित शाह पर उसी तरह कायम है...जैसे 2013 और 2014 में कायम था ।
नरेंद्र मोदी को यूपी के रास्ते देश भर में परचम फहराने के लिए एक सेनापति की जरूरत थी...और उनके लिए ये चुनाव मुश्किल नहीं था ..क्योंकि उनके पास मौजूद थे उनके खास शाह ...
मोदी के शाह ने लोकसभा चुनाव में यूपी की चुनावी कमान तो संभाल ली थी ... लेकिन शाह के सामने थी अबतक की सबसे बड़ी चुनौती.. और वो चुनौती थी यूपी फतह की ...80 लोकसभा सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में तब बीजेपी के महज 10 सांसद थे....
कागज पर तो संगठन मजबूत था लेकिन जमीन पर कार्यकर्ता नदारद थे ...और तो और नेता भी पार्टी का झंडा बुलंद करने की जगह अपनी जमीन पक्की करने के लिए गुटबंदी में व्यस्त थे ।
लेकिन एक दशक से गुजरात में मोदी की विजय पताका फहराने वाले सेनापति अमित शाह भला हार कहां मानने वाले थे ....
चुनौती कठिन थी लेकिन साबरमती की भूमि पर कमाल दिखाने वाले शाह ने मां गंगा से आशीर्वाद लेने की ठान ली थी ...
शाह के लिए यूपी की जमीन भले ही नई हो लेकिन उनके पास था करीब 3 दशक का रणनीतिक अनुभव और इन सबसे आगे जा कर कार्यकर्ताओं से उनके सीधे संवाद की कला...
16 मई 2014 को लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ ही यूपी पर केसरिया पताका फहरा रहा था ...बीजेपी ने शाह की अगुवाई में 71 सीटें जीत कर नरेंद्र मोदी के दिल्ली कूच का रास्ता साफ कर दिया था ..अभिभूत से नरेंद्र मोदी ने भी तब माना था कि ये कमाल सिर्फ अमित शाह ही कर सकते हैं...।
अमित शाह पर नरेंद्र मोदी का भरोसा कोई नया नहीं है ... ये बात साल 1982 की है जब नरेंद्र मोदी से उनकी पहली मुलाकात हुई थी...
1995 में केशुभाई के मुख्यमंत्री बनने के बाद मोदी-शाह की जोड़ी ने गुजरात से कांग्रेस के सफाए के लिए एकजुट कोशिश शुरू की थी...नरेंद्र मोदी अमित शाह की संगठन की क्षमता से बखूबी परिचित हो चुके थे ...तभी तो 2002 में गुजरात की सत्ता संभालने के बाद अमित शाह को उन्होंने गृहमंत्री बनाया ...
लगभग दो दशक तक शाह ने गुजरात में बीजेपी के मुख्य रणनीतिकार की भूमिका निभाई ..अब मौका था पूरे देश में शाह की संगठन क्षमता के इस्तेमाल की ...और लोकसभा जीतने के बाद नरेंद्र मोदी के सबसे करीबी बीजेपी की कमान सौंपी ....
कार्यकर्ताओं से नजदीकी अमित शाह का ब्रम्हास्त्र है ...आरएसएस के झंडाबरदार अमित शाह ने वार्ड सचिव से संगठन में शुरुआत की थी... और वे कार्यकर्ताओं की समस्या से लेकर उनके बेहतर इस्तेमाल को बखूबी जानते हैं ... कार्यकर्ताओं से जुड़ाव का ही करिश्मा है कि जिसने बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा दिलवाया है।
चुनाव प्रबंधन में अमित शाह को प्रमोद महाजन की तरह की महारत हासिल है ... माना जाता है कि अटल-आडवाणी युग में पार्टी जिस तरह से महाजन पर निर्भर थी शायद उससे भी ज्यादा आज शाह के प्रबंधन पर निर्भर है ...चुनावी प्रबंधन में बूथ कमेटी पर शाह का सबसे ज्यादा जोर रहता है ...जो आरएसएस की शाखा परंपरा से लिया गया है ...
करीब एक दशक तक गुजरात में मोदी मंत्रिमंडल का अहम हिस्सा होने के बावजूद उन्होंने हमेशा खुद को लो प्रोफाइल ही रखा ... चुनाव की गहमा गहमी के बीच भी वे बिल्कुल सादगी से अपना काम करते रहे ...
अमित शाह के बारे में मशहूर है कि वे कार्यकर्ताओं का एक भी फोन मिस नहीं करते... कार्यकर्ताओं के साथ हर मुद्दे पर लंबी बात करना उनकी पुरानी आदत है... बीजेपी के कई बड़े नेता उनकी इस क्षमता को आज भी सलाम करते हैं...
अमित शाह की एक और खासियत काम को लेकर उनका प्रैक्टिकल एप्रोच है ..तभी तो अपनी सादगी और काम के लिए मशहूर हस्तियां भी उनकी नेतृत्व क्षमता को सलाम करती हैं ।
अमित शाह ने आरएसएस की विचारधारा को जितना आत्मसात किया...वक्त की नजाकत को भी उन्होंने उतनी ही शिद्दत से समझा.. ...और इसी का नतीजा है चुनाव के दौरान उनका वॉर रूम कॉन्सेप्ट ...अमित शाह की इस रणनीति ने हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में कमल खिलाया तो जम्मू कश्मीर में भी पहली बार बीजेपी की सरकार बनाई... लेकिन शाह के सामने अभी भी कई बड़ी चुनौतियां हैं तो बीजेपी की उम्मीद अभी भी शाह पर टिकी है ।।।।
एक के बाद एक लगातार जीत ... 2014 अमित शाह के लिए बेहद खास रहा ...जब उनकी अगुआई में बीजेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में विजय पताका फहराई... झारखंड को भी लगभग एक दशक बाद स्थिर सरकार का तोहफा दिया ... तो उनकी अगुआई में जम्मू कश्मीर में पहली बार पीडीपी के साथ मिलकर बीजेपी की सरकार बनी......
लेकिन 2015 की लौटती सर्दी अमित शाह के लिए मुश्किल पैदा करने वाली साबित हुई ...जिस दिल्ली से पूरे देश में बीजेपी की सरकार चलती है ... वहीं की विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एक नई सियासी पार्टी आम आदमी पार्टी के हाथों मात मिली...तो लगभग 8 महीने बाद देश के एक दूसरे महत्वपूर्ण प्रदेश बिहार में... विधानसभा चुनाव में भी शाह के नेतृत्व में बीजेपी जीत से दूर रह गई ...
बिहार चनाव की हार पार्टी के लिए बड़ा झटका था लेकिन इस मुद्दे पर पार्टी एक जुट है...इसे बीजेपी के दिग्गज भी मानते हैं और ये भी स्वीकार करते हैं कि हार सामूहिक नेतृत्व की विफलता थी.
बिहार की हार के लिए पार्टी उन वजहों को भी जिम्मेदार मानती है . जिसने बिहार की जनता को गुमराह किया ... संगठन में काफी सालों तक काम करने वाले कई नेता मानते हैं कि विकास की राजनीति पर बिहार की जातीय राजनीति हावी हो गई ...और पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा....
नरेंद्र मोदी की अगुआई में मोदी सरकार करीब एक तिहाई कार्यकाल पूरा कर चुकी है ...तो इस साल देश में कई महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव हैं...और बीजेपी की नजर उन राज्यों पर है जहां अब तक उनकी उपस्थिति ना के बराबर रही है ... पार्टी की नजर पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तर पूर्व तक पर है ।
पार्टी को पिछले साल दो बड़ी हार भले ही झेलनी पड़ी हो लेकिन उम्मीद का दामन नहीं छूटा है ... पार्टी असम में अच्छी हालत में है ..और शायद पहली बार राज्य में सरकार बनाने के बेहद करीब भी ।
एक के बाद एक 4 प्रदेशों में विजय पताका लहरानेवाले अमित 'अनिलचंद्र' शाह अब नए मिशन पर हैं......इस नए मिशन पर इसबार उनका सामना पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी में मुलायम सिंह यादव से होना है........तो असम, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी, के साथ-साथ पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी उन्हें अपनी रणनीति का कौशल दिखाना है....।
'मिशन 2016'
असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पुडुचेरी
इस साल अमित शाह के सामने सबसे पहली और बड़ी चुनौती असम विधानसभा चुनाव है...जिसके लिए प्रचार अभियान का काम शुरु भी हो चुका है...और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां का चुनावी दौरा भी कर चुके हैं..।
126 सीटों वाले असम विधानसभा के लिए अमित शाह ने 84 प्लस का लक्ष्य रखा है...और इसके लिए असम गण परिषद समेत कई दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पर बात चल रही है ।
'मिशन बंगाल'
इसी साल पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं....और ममता बनर्जी से सियासी जंग के लिए अमित शाह पिछले डेढ़ साल से तैयारी में लगे हैं....बीजेपी को दिल्ली में हरा चुके केजरीवाल और बिहार में हरा चुके लालू-नीतीश दोनों ममता बनर्जी को चुनावी टिप्स देने में लगे हैं...ऐसे में अमित शाह को सतर्क रहना होगा.....और किसी भी कीमत पर उन्हें पश्चिम बंगाल के लोगों का दिल जीतना होगा।
मिशन 2017
उत्तरप्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर
2016 में अमित शाह जो रणनीति बनाएंगे और जितना सफल होंगे उसी आधार पर 2017 की तैयारी मुकम्मल होगी...ममता बनर्जी को अगर अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में घेर लिया तो फिर यूपी की राह आसान हो जाएगी....हालांकि उत्तरप्रदेश में अखिलेश-मुलायम के साथ-साथ मायावती भी उनके लिए बड़ी चुनौती हैं ।
उत्तरप्रदेश के बाद पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में भी विधानसभा चुनाव 2017 में ही होनेवाले हैं...और यूपी की हार-जीत का असर वहां भी देखने को जरूर मिलेगा....वैसे उत्तराखंड और गोवा में बीजेपी मजबूत स्थिति में है और वहां चुनाव जीतना बीजेपी के लिए कोई मुश्किल नहीं....मुश्किल है तो पंजाब..।
वैसे, मुश्किलों को आसान और परिस्थितियों को अपने माकूल बनाना अमित शाह की फितरत रही है...और इसी पर भरोसा कर उन्हें फिर से भारतीय जनता पार्टी की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है....देखना है इस बार अमित शाह क्या गुल खिलाते हैं और ममता-मुलायम से कैसे पार पाते हैं ।
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